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हिंदी कविता शापित

हिंदी कविता शापित

कुछ पदचिन्ह छोड़ चले हम, जिंदगी की राहों में,
ढूंढोगे घर हमारा एक दिन,पता लेकर के बाहों में।

रोओगे तो तुम भी एक दिन,जब देखोगे दर्पण में।
यह हाथ छोड़कर गए थे कैसे, गैरों की पनाहों में।

डूब न जाना किसी रोज,गलतफहमी के तालों में,
अंधेरों में स्वार्थ है होता,गैरों से मिली सलाहों में।

झूठों का कोलाहल फैला,आज के इस जमाने में,
सुना आजकल जहर घुला है,चारों ओर हवाओं में।

उसकी यादें धूमिल होंगी,चाँदनी सी कोहरे में,
जवानी में कहीं बहक न जाना,लहरों के बहाओं में।

भ्रमित हुए थे तुम शायद,कांटों के समझाने में,
ये आकाश,चाँद,तारे सब डूब गए अफवाहों में।

मैं शापित झुलस रहा हूँ,बिछुड़न के गर्म थपेड़ों में,
मेरी व्यथा समझ पाओ तो,आकर देखो खुजराहों में।

कितनी ऋतुएँ,मौसम बदले,पर मैं नहीं बदल पाया,
सिर्फ तुम्हारा नाम जपूं मैं,दर्द की हर एक आहों में।

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रचनाकार का परिचय
हरीश चमोलीमेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

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