आप पढ़ रहे हैं होली की कविता :-

होली की कविता

होली की कविता

रंगो के इस मौसम में, कुछ रंग यू आकर बिखर गए।
धरा में मानो चित्रकार की, चित्रकारिता प्रखर गए।

कुछ लाल रंग की लालिमा में, प्रेम को अपने पा गए।
कुछ हरे रंग के साथ अपनी, हरितिमा को लुभा गए।

इस पीले का तो क्या कहना? अपने स्नेह को वो पिघला गया।
इस नीले का तो उफ! क्या कहूंँ? अपने रंग में सब को नहला गया।

केसरिया रंग ने तो संग होकर, सांवरियां का मन मोह लिया ।
सुर्ख गुलाबी अपने गुलशन से, गुलफाम के गाल को रंगा गया।

होली ने तो, अपना रंगीन समा सुहाना आकर सजा दिया।
आओ! हम भी अपनों के रंग में रंगकर सबके संग होली मनाएं ।

पढ़िए :- हिंदी होली गीत “तब समझों पर्व ये होली”


रचनाकार का परिचय

बिनीता नेगी

नाम: बिनीता नेगी
शिक्षा: एम. ए. बी. एड.( अंग्रेज़ी)

बिनीता जी एक गुज्जू पहाड़ी है, जो मूल निवासी पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड से हैं परंतु बचपन से पिछले एक साल तक गुजरात में रही हैं। इसी वर्ष ओरिसा में आई हैं। उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में २२ साल का तजुर्बा हैं। वे विद्यालय की हेड मिस्ट्रेस रह चुकी हैं। लिखना उनकी रुचि रही है। उनकी रचनाएं सांझा काव्य संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं।
उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उनकी संस्था से कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

“ होली की कविता ” ( Holi Ki Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे रचनाकार का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।

धन्यवाद।

Leave a Reply