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Judai Par Kavita
जुदाई पर कविता
‘ जुदाई ‘ विधाता लिखता उनके नसीब में
सहनशक्ति अद्भुत होती अपार जिसमें
जुदाई के बाद मिलन का अधिकारी वही
तड़पा है उस पल के लिए जो हर पल मे।
जुदाई एक परीक्षा है धैर्य की विश्वास की
अनदेखी राह है यह मिलन के आस की
जो चला इस राह रख भरोसा प्रेम पर
जीता वही सदा जो जला विरह की आग पर।
सीता ने राम से जुदाई का जहर पिया
एक पल मे सैकडों विरह के बरस जिया
आए राम जिस पल सिय नैनों के सामने
अश्रु बन नैनों से प्रेम रस बहने लगा।
कान्हा की जुदाई राधा ने कैसे सही
हो गया सूना गगन मौन हो गई मही
प्रेम की सशक्त परिभाषा तब ही बनी
कान्हा मे डूब राधा “राधे” रूप में सजीं।
मिलन फिर जुदाई जग की सनातन रीत है
जुदाई फिर मिलन यही प्रेम की जीत है
मिलन हो आत्मा का परमात्मा से अटल
फिर ना कभी जुदाई का कोई अस्तित्व हो।
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रचनाकार का परिचय
नाम – मंजुलता पांडेय
शहर – सतना (म.प्र.)
मंजुलता जी एक शिक्षिका हूँ। इन्होने कई विषयों पर कविता लिखी है और कई मंचों से सम्मान पत्र भी प्राप्त किया है।
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