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प्रेरणादायक कविता भय का मुखौटा उतार

प्रेरणादायक कविता भय का मुखौटा उतार

भय का मुखौटा उतार कर
धारण करो साहस की ज्वाला।
किताबें पढ़कर बनो तुम ज्ञानी
मिटाओ तम सा अज्ञान काला।।

वास्तविकता में रहना सीखो
किसी व्यक्ति की ना करो नकल।
तुम जैसा नहीं कोई जगत में
अपने बल पर बनो सफल।।

जितना तुम कर सकते हो
सदा करो उससे ज्यादा।
विपरीत परिस्थितियों से तुम
टकराने का करो वादा।।

गुणों को अपने निकालो बाहर
करो न तुम विचारों को कैद।
तुम्हारे दर्द की दवा तुम हो
रोगी नहीं तुम तो हो वैद ।।

जीवन में नकारात्मक लोगों के
कटु शब्दों की न करना परवाह।
उसके लिए सफल होना जिसने
तुम्हे अपने पेट रखा में नौ माह।

सफलता की खुशी से तुमको
भरना है मां की खाली झोली।
गोद में उसके सिर रख बोलना
नन्हे बच्चों जैसी बोली।।

गोद में मां के ऐसा प्रतीत होगा
जैसे सपनो के स्वर्ग में तुम हो।
लोरी सुनकर तुम सो जाना
जैसे अपने बचपन में गुम हो।।

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नमस्कार प्रिय मित्रों,

सूरज कुमार

मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।

क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।

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