आप पढ़ रहे हैं ( Judai Par Kavita ) जुदाई पर कविता :-

जुदाई पर कविता

जुदाई पर कविता

जिन्दा हूँ पर बेजान हो गया हूँ
बिना तेरे वीरान हो गया हुँ,
घर की रौनक खो गई है कहीं
जैसे सूना मकान हो गया हूँ ।।

मौसम है ये इश्क़ मे जुदाई का
तुझ बिन सूखा मैदान हो गया हूँ,
घेरने लगे है मुझे मौत के साये
दो पल का मेहमान हो गया हूँ ।।

जल रही है ख्वाहिशो की चितायें
लाशो का श्यमशान हो गया हुँ,
उजाला छीन रही ये काली रातें
अँधियारा आसमान हो गया हूं ।।

चल रहा हूं मंजिल का पता नहीं
फूलों से अनजान हो गया हूँ ,
सारी ख्वाहिशें बह गए आंशुओ मे
इश्क़ मे टुटा अरमान हो गया हूँ ।।

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रचनाकार का परिचय

पुष्पराज देवहरे

नाम :- पुष्पराज देवहरे
ग्राम :- दोंदे खुर्द रायपुर
पढ़ाई – BA फाइनल, PGDCA
रूचि – कविता लेखन, पढ़न
कार्य – सोशल वर्कर, भीम रेजिमेंट छत्तीसगढ़ गैर राजनीतीक संगठन ब्लॉक सचिव धरसींवा रायपुर,

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