कागज कलम की तकरार कविता ( Kagaz Kalam Ki Takraar Kavita ) – जहाँ प्यार होता है वहां तकरार भी हो ही जाती है। फिर रूठना-मनाना भी होता है। ऐसा होता है तो इंसानों के बीच। लेकिन एक कलम और कागज में कैसे तकरार हो सकती है आइये पढ़ते हैं :-
कागज कलम की तकरार कविता
जब कलम ने बोला कागज से
तू मेरे वश में रहता है
जो कुछ लिख दूँ तेरे ऊपर तू
उसी बात को कहता है।
गुस्सा खाकर कागज़ बोला
मैं नहीं हूँ तेरे दबाड़े में,
मैं रहूँ सुरक्षित बहुत दिनों
तू जल्दी फिके कबाड़े में।
ये समझ बहादुरी मेरी
अपनी पीठ पर तुझे झुलाता हूँ,
एक आदमी की बातों को
दूजे तक पहुंचाता हूँ।
सुनकर कागज की बातें
फिर कलम उसे है समझाती,
मैं न होती तो इस दुनिया में
तो कीमत तेरी घाट जाती।
इसलिए यार गुस्सा छोड़ो
अब मिलकर दोनों काम करें,
समय-समय पर इस दुनिया में
अपना ओना नाम करें।
जीवन का लक्ष्य है प्रेम भाव
झगड़ा फसाद तकरार नहीं,
वो जीवन भी क्या जीवन है
जिसमें थोडा प्यार नहीं।
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यह रचना हमें भेजी है रनवीर सिंह जी ने ग्राम जऊपुरा, सिकंदरा, आगरा से।
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