एकल जीवन है एक संघर्ष
एकल जो जीवन यापन करती,
उनका क्या, कहना!
इस जीवन में, वो ही तो है,
सबसे बड़ी योद्धा।
हर चुनौतियों को जो स्वीकार करती,
खुद ही खुद को हौसला दे,
स्वयं को मजबूत बनाती।
हर परिस्थिति का
बेखौफ सामना कर,
एकल होकर भी बच्चों के लिए
मां-बाप दोनों वक्त -वक्त पर बनती।
पल-पल हुए अपमान को सहती,
लोगों से अभागन शब्दों का ताना है सुनती।
तिरस्कार होता पल पल
उसका अपने ही घर में,
कोई उम्मीद ना बचती
फिर उसके मन में।
फिर भी निरंतर बढ़ाती रहती,
कदम आगे जीवन में।
खुशी समझती अपनी,
हर गम वाले मातम में।
हम सबों की छोटी-छोटी कोशिश,
खिल-खिला देगी उनका अंतर्मन,
सम्मान करें अगर उनका हम।
बड़ी ही कठिन राह से गुजारती,
एकल अपना जीवन।
यह बात ना होगी कुछ कम …..
जब हर गली, हर शहर और जन-जन में
एकल के सम्मान का परचम,
अगर लहरा दें हम।
यह कविता हमें भेजी है मनीषा मारू जी ने विराटनगर, नेपाल से।
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