बिना नारी समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। नारी ही है जिसके कारन सारा संसार गतिमान है। नारी माँ बन कर पालती है। बहन बन कर राखी बांधती है। रानी लक्ष्मीबाई बन कर अपने हक़ के लिए लड़ती है। मदर टेरेसा बन कर सब की सहायता करती है। फिर भी हमारे समाज में आज नारी को वो सम्मान क्यों नहीं दिया जाता जिसकी वो हक़दार हैं। इसी विषय पर आधारित है यह नारी अस्मिता पर कविता

नारी अस्मिता पर कविता

नारी अस्मिता पर कविता

निर्ममता से रौंदा जिसे क्या वो इतना सताती है।
औरत की इक कहानी छबीली भी तो बताती है।

जो चट्टानें बड़ी होती हैं,वो थोड़ा कष्ट तो देती हैं,
और सावित्री बनकर वह,प्राण भी तो बचाती हैं।

क्या हुवा यदि लहरों ने,थोड़ा बहुत सताया होगा,
मझधार में डूबती नैय्या को,पार भी तो कराती हैं।

वो कली यदि बदसूरत, कमजोर भी हो तो क्या?
बंजर खेत को बाग में,बदलकर भी तो सजाती है।

स्त्री सुनसान सी राहों में, सिमट रही नदी सी ही,
निरंतर जींवन दायिनी बन,जल भी तो बहाती है।

न बाँधिए इन पतंगों को,परम्पराओं की डोरी से,
छूकर नील गगन नारियाँ,शोभा भी तो बढ़ाती है।

भटक जाते हैं जो पुरूष,अपनी ही राह अंधेरों में,
किसी जुगुनू सी आकर वो,राह भी तो दिखाती है।

मत कोसो हवा को,अगर थोड़ा प्रखर हुई कभी,
बेजान जहाजों को,आसमानों में भी तो उड़ाती हैं।

खेलते हैं अस्मिता से,पानी की जो दुर्जन उन्हें,
वही बर्फ,ओंस,पाला,का रूप भी तो दर्शाती है।

क्यूँ बना नारी जींवन,यातनाओं का कारखाना,
वेदना सहकर वह,दुनियाँ को भी तो चलाती है।

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रचनाकार का परिचय
हरीश चमोलीमेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

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