कविता जीवन माँ का दर्पण

कविता जीवन माँ का दर्पण

कविता जीवन माँ का दर्पण

ये जीवन माँ का दर्पण है
बस माँ का मान बढ़ाता चल।
धन दौलत यहीं पे छूटेगी
सत्कर्मों की राह बनाता चल।।

खुशीयों की किसी से ना जलना
अपने सपने साकार करो,
गुलशन में किसी के ना खिलना
अपने पुष्पों से श्रृंगार करो,
मत चढ़ना झूठ की वेदी पर
सच का दीप जलाता चल,
ये जीवन माँ का दर्पण है
बस माँ का मान बढ़ाता चल।।

उन लम्हों को ना तुम याद करो
दु:खदर्द में जो तुमको छोड़ गये,
क्या कीमत है उन हीरों की
जो इक पल में रिश्ते तोड़ गये,
तू समझदार की बस्ती में
इक नादाँ बनके चलता चल,
ये जीवन माँ का दर्पण है
बस माँ का मान बढ़ाता चल।।

उन रिश्तों को ठुकराओ तुम
धोखा देकर जो रूला जाते,
मीठे वचनों की आड़ में जो
नफरत का जहर पिला जाते,
तू अपनी व्याकुलता का जल
अपने नयनों से बहाता चल,
ये जीवन माँ का दर्पण है
बस माँ का मान बढ़ाता चल।।

पाखंडी रंगों से हरदम दूर रहो
जो सबको बेरंग बनाते हैं,
कृत्रिम फूलों की खुशबू से
जो तेरा रंग नूर चुराते हैं,
तू अपने सीरत के दर्पण में
अपना स्वरूप सजाता चल,
ये जीवन माँ का दर्पण है
बस माँ का मान बढ़ाता चल।।

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