आप पढ़ रहे हैं “कविता माँ की जय जयकार “:-

कविता माँ की जय जयकार

कविता माँ की जय जयकार

बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !
फूल मिलें चाहे मिले हो कांटे
सबको हंसके स्वीकार करो !!

सारी दुनिया को छोड़ कर
हम शरण तुम्हारी आए हैं !
जिसमें हो हम सबका भला
वह अब मेरे करतार करो !!

बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !

तुम बिन उजड़ न जाए कहीं
देखों मेरे जीवन की बगिया !
देके अपनी भक्ति की शक्ति
जीवन मेरा गुलजार करो !!

बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !

यहां पर जिंदगी छोटी है
और सफर बहुत ही लंबा है !
मझधार में अटकी है नैया
माँ मेरा बेड़ा पार करो !!

बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !

तन मन से करते हैं हम
रात ओर दिन भक्ति तुम्हारी !
कभी हमारी भी सुध लेकर
हम पर भी उपकार करो !!

बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !

पढ़िए :- कविता माँ तो है परछाई | Kavita Maa To Hai Parchhai


“ कविता माँ की जय जयकार ” ( Kavita Maa Ki Jai Jaikar ) आपको कैसी लगी ? “ कविता माँ की जय जयकार ” ( Kavita Maa Ki Jai Jaikar ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

धन्यवाद।

Leave a Reply