कृष्ण से बिछड़ने के बाद उनके प्रिय सखा सुदामा उन्हें किस प्रकार याद कर रहे हैं आइये पढ़ते हैं कृष्ण सुदामा की मित्रता कविता “हे कान्हा तेरी याद ” :-

कृष्ण सुदामा की मित्रता कविता

कृष्ण सुदामा की मित्रता कविता

हे कान्हा तेरी याद
दिल से भुलाई नहीं जाती,
दुर्लभ प्रेम कहानी अपनी
जग को सुनाई नहीं जाती।

मैं श्रीहीन तुम श्री हरी हो
तो करो दर्द का दावा,
उठी टीस कलेजे में जो
अब दबाई नहीं जाती।

हे कान्हा तेरी याद
दिल से भुलाई नहीं जाती।

भक्ति रस पिलादे इतना
कि होश कभी ना आये,
चाहे तो ठुकरा दे मुझको
या कहदे पिलाई नहीं जाती।

हे कान्हा तेरी याद
दिल से भुलाई नहीं जाती।

मैं ढूंढ रहा तुझे दर-बदर
पर तेरा दर कहीं ना मिलता,
दर-दर की जो लिखी ठोकरें
अब और खाई नहीं जाती।

हे कान्हा तेरी याद
दिल से भुलाई नहीं जाती।

नैन खुले तो आप दिखे
नैन मुंदे तो सिर्फ आप,
डबडब करती कोर से
यूँ नींद दिलाई नहीं जाती।

हे कान्हा तेरी याद
दिल से भुलाई नहीं जाती।

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