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माँ बाप पर कविता

माँ बाप पर कविता

लोक जन कल्याण हेतु
लिख रहे जो काव्य हैं,
पीढ़ियों को सीख देकर
दे रहे जो ताप है,

रह गया वंचित अगर जो
आज के इस बात से
उसके लिए जीवन सदा ही
जीवन नहीं अभिशाप है। 

क्या कहूं कैसे कहूं 
भावी युवा जज़्बात को,
नापते हैं हर किसी के
हैंसियत औकात को,

सोंचते जो है नही
जैसी करनी तस खेल को
छींटते जो बीज भू में 
मिलता वही सब आप को। 

शिक्षित हुए किस बात का
किस बात का अभिमान है
मां बाप को तू छोड़ कर
कैसा बना हैवान है

दुनिया जगत संसार में
है खोजता जिस देव को
मां बाप के ही रूप में
वह सामने भगवान है। 

दौलत सभी जो थे रखे
मां बाप अपने पास में
आज तेरा हो गया अब
उनके लिए न खास है,

वक्त भी आयेगा एक दिन
खुद समझ जाएगा तूं
भागता पीछे है जिसके
छोड़ कर मां बाप है। 

स्वर्ग न दिखता कहीं भी
न दिखे सब देव ही,|
सामने जो देव अपने
धिक्कारते सदैव ही,

ले पकड़ जो अंगुलियां 
चलना सिखाया है हमें
पूज ले यह देवता
फिर मिले या ना मिले। 

वक्त का बदलाव है
बच्चा बड़ा अब हो गया
खलता सदा यह बात कि
बच्चा बदल सा अब गया,|

सामान सा न बांट इनको
ये तेरे भगवान हैं
रख सजा मंदिर में मन के
यदि बात मन को भा गया। 

पढ़िए :- हिंदी कविता माँ की जय जयकार | Kavita Maa Ki Jai Jaikar


रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।

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