मौत पर कविता

मौत पर कविता

मौत पर कविता

अमर कोई ना होगा यहाँ पे
छिन जायेगी नैनों की ज्योति,
जल कर राख है होना सबको
क्यों साँसों की माला पिरोती।।

क्या काया और क्या माया
क्या धन दौलत साथ जायेगा,
छल कपट का तिलक लगा के
क्या गंगा में तू नहायेगा,
माना आज हो सुंदर कल को
इक दिन बुढ़े हो जाओगे,
नश्वर काया देखेगी क्या
खुद को खुद की चिता में तपती,
जल कर राख है होना सबको
क्यों साँसों की माला पिरोती।।

माना आज है तुझमें हवा भरी
कल पंचर भी हो सकते हो,
ना गुमां करो इस धरती का
कल बंजर भी हो सकते हो,
हम पैदा हुए थे असाधारण
पर खुद को साधारण ही माना,
कुछ अद्भुत करने को सह गए
जब जब हम पे आई विपत्ती,
जल कर राख है होना सबको
क्यों साँसों की माला पिरोती।।

हाथ खोल कर आए थे सब
हाथ खोल जायेंगें इक दिन,
मैं अपने मन को समझा लूगाँ
जीवन जीना है माँ तुम बिन,
मर्यादा के आँचल तले
जो संस्कारी शिक्षा पायी थी,
बन दीप जला सारा जीवन
मन की व्याकुलता है खलती,
जल कर राख है होना सबको
क्यों साँसों की माला पिरोती।।

अमर कोई ना होगा यहाँ पे
छिन जायेगी नैनों की ज्योति,
जल कर राख है होना सबको
क्यों साँसों की माला पिरोती।।

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