शिक्षाप्रद हिंदी बाल कविता :- हमें धोखा देने वाले अपने ही होते हैं क्योंकि गैरों को हमारी कमजोरी का पता नहीं होता। इसलिए जीवन में सभी से सतर्क रहना चाहिए। लेकिन एक चीज जो उससे भी जरूरी है वह यह कि हम पर भले ही कितनी मुसीबत आये हमें कभी भी सहायता के लिए दुश्मन के पास नहीं जाना चाहिए। दुश्मन पर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता। यही संदेश दे रही हमारी यह शिक्षाप्रद हिंदी बाल कविता। तो आइये पढ़ते हैं शिक्षाप्रद हिंदी बाल कविता :-

शिक्षाप्रद हिंदी बाल कविता

शिक्षाप्रद हिंदी बाल कविता

रहना हमको सदा चाहिए
आपस में हिलमिल कर,
और करें जितना हो संभव
हम सहयोग परस्पर। १।

मानव है सामाजिक प्राणी
इक दूजे पर निर्भर,
हो आपस में दया प्रेम तो
बहे सुखों के निर्झर। २।

किन्तु लोग कुछ करते रहते
आपस में ही झगड़ा,
जिससे उनका जीवन रहता
हरदम दुःख से जकड़ा।३।

लिया जिन्होंने दुश्मन से मिल
अपनों से ही बदला,
दिया उन्होंने इसी आग में
अपना घर – बार जला। ४।

बलशाली दुश्मन को जो जन
जा आमंत्रण देते,
जानबूझकर वे आफत को
अपने सिर पर लेते। ५।

बच्चों ऐसी एक कहानी
जरा ध्यान से सुनना,
सीख छुपी जो इसके अन्दर
उसको भी फिर गुनना। ६।

एक कुआँ था बहुत पुराना
किसी गाँव के बाहर,
रहने वहाँ लगे थे मेंढक
दूर दूर से आकर। ७।

अपने अपने परिवारों में
सब हिलमिल कर रहते,
एक दूसरे के घर जाते
अपना सुख दुःख कहते। ८।

उस बस्ती में ही रहता था
राजा नामक मेंढक,
आए दिन उसकी औरों से
होती रहती बकझक। ९।

खुद का भी परिवार बड़ा था
कितने ही थे भाई,
होती रहती थी राजा की
उनसे हाथापाई। १०।

कहासुनी दामादों से भी
उसकी अक्सर होती,
उसका यह व्यवहार देखकर
पत्नी चुप चुप रोती। ११।

एक बार परिवार – जनों ने
मिल राजा को पीटा,
टाँग पकड़कर दामादों ने
बाहर उसे घसीटा। १२।

यह मर्यादाहीन आचरण
राजा को बहुत खला,
सोच रहा वह दामादों से
अब कैसे ले बदला। १३।

दूर कहीं तब इक दिन उसको
दीखा साँप सरकता,
सोचा – इससे पूर्ण मनोरथ
अब मेरा हो सकता। १४।

कोशिश करके इसी साँप से
जरा मित्रता पालूँ,
ले जाकर मैं इसे कुएँ में
शत्रु खत्म कर डालूँ।१५।

यही सोच कर राजा बोला
पास साँप के आकर,
हे प्रियदर्शी ! धन्य आज मैं
साथ आपका पाकर। १६।

माना मैंने रही दुश्मनी
अपनी बहुत पुरानी,
लेकिन सुन लें एक बार तो
मेरी करुण कहानी। १७।

दामादों ने मुझे पीटकर
घर से दूर भगाया,
मजबूरी में आज आपसे
मदद माँगने आया। १८।

कहा साँप ने मेंढक राजा
व्यर्थ कष्ट क्यों सहते,
अब मुझको वह जगह बताओ
जहाँ सभी वे रहते। १९।

मेंढक बोला – निकट गाँव के
एक बड़ा है बरगद,
पत्थर का है एक वहीं पर
कुआँ पुराना बेहद। २०।

वहीं कुएँ पर एक छेद में
छुपा – छुपा मैं रहता,
अपने मित्रों से दूरी को
आखिर कब तक सहता। २१।

एक खोखला ठीक बगल में
है सबसे अनजाना,
वहीं बैठकर आप मजे से
मेरे दुश्मन खाना। २२।

साँप सोचता – बूढ़ेपन में
मुश्किल चलना – फिरना,
क्यों न मेंढकों को खाकर ही
पेट भरूँ मैं अपना। २३।

यही सोचकर कहा साँप ने
चलो चलें हम भाई,
शत्रु – नाश में उचित नहीं है
देना और ढिलाई। २४।

मेंढक बोला – नाग देवता !
जरा ध्यान यह रखना,
जिस जिसके भी लिए कहूँ मैं
केवल उसे निगलना। २५।

कई वहाँ हैं मित्र हमारे
उनकी रक्षा करना,
महिलाओं बच्चों बूढ़ों के
प्राण नहीं तुम हरना। २६।

कहा साँप ने – इन शर्तों से
अब मैं नहीं टलूँगा,
मान आपके निर्देशों को
अब मैं सदा चलूँगा। २७।

दोनों मित्र कुएँ में पहुँचे
एक रहँट के द्वारा,
साँप खोखले में रहकर अब
करने लगा गुजारा। २८।

अब दुश्मन की ओर इशारा
मेंढक करता जाता,
और साँप उन बेचारों को
एक एक कर खाता। २९।

साँप खा गया धीरे-धीरे
जब दुश्मन ही सारे,
तब बोला वह मेंढक से अब
किसके रहूँ सहारे। ३०।

मेरी भूख मिटाने का भी
कुछ प्रबन्ध तो करिए,
मुझ बूढ़े का पेट आप ही
जैसे – तैसे भरिए। ३१।

मेंढक बोला – आप यहाँ से
अब अपने घर जाएँ,
किया बहुत उपकार आपने
कैसे इसे जताएँ। ३२।

कहा साँप ने क्रोधित होकर
मैं तो हूँ अब बेघर,
किया और ने कब्जा होगा
मेरे बिल के ऊपर। ३३।

छोड़ कुआँ यह अन्य जगह मैं
कभी नहीं जाऊँगा,
खाने को दो प्रतिदिन वरना
तुम सबको खाऊँगा। ३४।

अपनी करनी पर वह मेंढक
लगा बहुत पछताने,
सोच रहा था काश साँप को
गया न होता लाने। ३५।

है छुटकारा अब तो मुश्किल
इस पापी से पाना,
खाने को देना ही होगा
कुछ इसको रोजाना। ३६।

एक एक मेंढक फिर प्रतिदिन
लगा साँप वह खाने,
बची खुची मेंढक – बस्ती को
जल्दी से निपटाने।३७।

बाकी मेंढक प्रियदर्शी का
जब बन चुके निवाला,
राजा के बेटों को उसने
तब चुनकर खा डाला। ३८।

लगा विवश बेचारा राजा
फूट फूटकर रोने,
जा बैठा वह शीश पकड़कर
उजड़े घर के कोने। ३९।

“अब क्यों रोते अरे मुर्ख तुम ”
पत्नी बोली आकर,
” नष्ट जाति अपनी करवाली
यहाँ साँप को लाकर”। ४०।

अरे ! लोग अपने ही आखिर
काम दुःखों में आते,
रूठ भला ऐसे भी कोई
दुश्मन घर में लाते। ४१।

पत्नी बोली भाग चलें अब
किन्तु नहीं वह माना,
पत्नी के संग बुद्धि ने तब
छोड़ा साथ निभाना। ४२।

और अन्त में राजा भी वह
बना साँप का भोजन,
नष्ट कर गया कुनबा सारा
दुश्मन से संयोजन। ४३।

आपस के झगड़ों को बच्चों
मिलजुल कर सुलझाना,
बदला लेने को दुश्मन से
हाथ न कभी मिलाना। ४४।

अपने से बलवान शत्रु को
जो है मित्र बनाता,
जान बूझ वह अपने हाथों
जहर स्वयं ही खाता। ४५।

पढ़िए :-बाल कविता इन हिंदी “सपनों की दुनिया”

 

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