Nari Sashaktikaran Par Kavita हमारे समाज में सदियों से नारी पर अत्याचार होते आये हैं। आज बदलाव का समय है। समय है की नारियां अपनी ताकत स्वयं बने और अन्याय के विरुद्ध अपनी शक्ति दिखाएँ। ऐसे ही विषय को प्रस्तुत कर रही है यह ( Nari Sashaktikaran Par Kavita ) नारी सशक्तिकरण पर कविता :-

Nari Sashaktikaran Par Kavita
नारी सशक्तिकरण पर कविता

Nari Sashaktikaran Par Kavita

सुनो नारीयों,वक़्त आ गया,अब हथियार उठाने का।
पराक्रम दिखाओ खुद से ही,अपनी रक्षा कर पाने का।
बहुत लगाली आस-उम्मीदें,इस कायर समाज पुरुषों से,
साहस जगाओ खुद में ही तुम,अपनी लाज बचाने का।
श्रृंगार छोड़कर,जोश जगाओ, रक्त तिलक लगाने का।
सुनो नारीयों, वक़्त आ गया,अब हथियार उठाने का।

पहले शस्त्रों,फिर शास्त्रों के,निपुण ज्ञान का बोध लेलो।
शर्म, हया, लज्जा दफनाकर, परशुराम का क्रोध लेलो।
आँख उठाकर,कुनजर से,जो दुस्साहस करे झाँकने का,
चीरकर ऐसे पशु मानव को,स्वयं अपना प्रतिशोध लेलो।
भरो ललकार,आक्रोश जगाओ,पश्चिम से सूर्य उगाने का।
सुनो नारीयों, वक़्त आ गया, अब हथियार उठाने का।

वो दौर गया जब कान्हा ने, पांचाली की लाज बचायी है।
कहो इस कलियुग में किसने,कब उजड़ी माँग सजायी है?
नपुंसकों का यह समाज जो, बन बैठा है मूक बधिर अब,
इन नर पशुओं ने ही तो जग में, हवस की आग लगाई है।
एक नया आगाज करो मिलकर,सोया भाग्य जगाने का।
सुनो नारीयों, वक़्त आ गया, अब हथियार उठाने का।

जीने का अधिकार नहीं,ऐसे घृणित नररूपी पशुओं को।
नारियों को तो नोचा ही,सह रौंदते नवजात शिशुओं को।
सुनो हे नारी,भरो चिंगारी, अब अपनी क्रोधित आंखों में,
पहले करो दानव सँहार, फिर पोंछो बहते आँसुओं को।
उठा आवाज करो प्रयास, महाकाली सा बन जाने का।
सुनो नारीयों, वक़्त आ गया, अब हथियार उठाने का।

चेन्नम्मा का रक्त समाया,वीरांगनाओं की अमर कहानी है।
लक्ष्मीबाई सा तेज भरा है,जिसका साहस,शौर्य मर्दानी है।
रोने-धोने से न कुछ होगा,तलवार उठा अब हुंकार तू भर,
भूलो मत धमनियों में बह रही,पद्मावती की वीर रवानी है।
करो साहस नारियों अपनी,कमजोरी को ढाल बनाने का।
सुनो नारीयों, वक़्त आ गया, अब हथियार उठाने का।

हे पुरुषों तुम भी सुनो,न पुरुष प्रजाति को कलंकित करो।
नारियों पर अत्याचार कर,अपने वंश को न लज्जित करो।
बन्द करो यह आत्यचार तुम,न कुदृष्टि नारियों पर डालो,
उनकी रक्षा और सम्मान कर,स्ववंश को गौरवान्वित करो।
मजबूर नारियों न भय खाओ, पुरुषों का खून बहाने का।
सुनो नारियों, वक़्त आ गया, अब हथियार उठाने का।

ये नारीयाँ किसी की माँ,बहन,बेटी,तो किसी की पोती है।
उसकी ममता की छाया तुम, पशुओं के लिए भी रोती है।
तुम्हारी खुशियों हित ही जो,सारे गमों को अपने भूलती है,
कैसे रौंद देते हो उसे, जो तुम्हे नौ माह कोख में ढोती है।
सुनो नारियों, हिम्मत करो, सिर धड़ से काट गिराने का।
सुनो नारीयों, वक़्त आ गया, अब हथियार उठाने का।

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रचनाकार का परिचय

हरीश चमोली

मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

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