एक ईमारत में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है उसकी नींव। बिना नींव के मकान की कल्पना भी नहीं की जा सकती लेकिन प्रशंसा सदैव मकान की ही होती है। उस समय नींव की कोई बात ही नहीं करता। जीवन में इंसानों के साथ भी ऐसा ही होता है। कुछ इंसान ऐसे होते हैं जो एक नींव की भांति परिवार में अपना किरदार निभाते हैं लेकिन प्रशंसा किसी और की होती है। आइये पढ़ते हैं ऐसी ही भावनाओं को समेटे हुए नींव और मकान पर कविता ( Neev Banu Yaa Makan Kavita ) :-

नींव और मकान पर कविता

नींव और मकान पर कवितानींव ना बनाई मजबूत
सुंदर बनाया मकान,
पत्थर बनकर रह गयी नींव
मकान बना आलीशान,

बोझ बढ़ा और जिम्मेदारी
नींव बनी बेचारी भी,
मदमस्त रहा मकान अपने मे
नाच रही अट्टारी भी,

दबती गयी जमीन तले
उपरवाले दबाते गए,
डगमगाई अगर नींव तो
क्यूँ डर से हिलते गए,

माना मैं दिखती नहीं
पर क्या मेरा वजूद नहीं,
तेरी सुंदरता के आगे
दिखता कँही मै दूर नहीं,

स्वप्न नींव ने एक सजाया था
मकान उस पर इतराया था,
देकर दो इंटे कुछ सीमेंट मुझे
लाखों स्वयं पर खर्च करवाया था।

पढ़िए :- हिंदी कविता “कई सपने”


सारिका अग्रवालयह कविता हमें भेजी है सारिका अग्रवाल जी ने जो कि बिरतामोड, नेपाल में रहती हैं।

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