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ऋतुओं पर कविता

ऋतुओं पर कविता

जीवन का हर एक क्षण
नहीं होता है एक समान।
कभी होता है हरा भरा
कभी होता है रेगिस्तान।।

प्रकृति भी अपने मौसम
समय के बाद बदलती हैं।
जब सर्दी आती जीवन में
मानव की एक न चलती है।।

ऊनी परिधान पहनने पड़ते
भानू का सब करते इंतजार।
नन्ही रश्मि जब धरा पे आती
शीत शत्रु पर करती है वार।।

ठिठुर ठिठुर के मूक जन्तु
शीत ऋतु में होते है परेशान।
मनोकामना में सब यह कहते
शीघ्र बीते यह ऋतु हे भगवान।।

गर्मी मोहक सी प्रकृति पर
गरम लहरों से करती प्रहार।
हरे भरे पत्तों को वृक्ष से
सुखा के पल में देती उतार।।

मानव घर से निकालकर के
बैठते वृक्षों की शीतल छांव में।
राही दौड़ दौड़ कर भागता है
गरम धरा जब लगती पांव में।।

वर्षा का मौसम बच्चो को भाता
परन्तु दुःखी हो जाता है किसान।
तीव्र विनाशक बारिश के कारण
नष्ट हो जाते हैं खेत खलिहान।।

नन्हे प्यारे बच्चे बहती धारा में
बहाते हैं कागज की बनी नाव।
गर्मी,सर्दी,वर्षा खेल प्रकृति के
व नियम समय का है बदलाव।।

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नमस्कार प्रिय मित्रों,

सूरज कुरैचया

मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।

क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।

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