यशु जान के दस सदाबहार शेऱ :- दोस्तों मैं आपका यशु जान मेरी कविता और ग़ज़ल को पढ़कर बहुत से लोगों ने मुझसे फ़रमाईश की है कुछ शायरी की। इस लिए मैं आज आप सब के रूह – ब – रूह हो रहा हूँ अपने लिख़े हुए चंद लफ़्ज़ों के साथ। जिनको मैंने अपनी शायरी में पिरोने की कोशिश की है। और हर एक शेऱ के पीछे एक सच्चाई है और अग़र आप इस सच्चाई को जानना चाहते हैं तो ज़रूर कॉमेंट करें।

यशु जान के दस सदाबहार शेऱ

यशु जान के दस सदाबहार शेऱ

1.
मैंने लोग पानी पे चलते देखे हैं,
पेड़ के आंसू निकलते देखे हैं,
ईरान की हसीनाओं का हुस्न देख,
दिल ही नहीं पत्थर भी पिघलते देखे हैं,
मैंने नामुमकिन तब्दीलियों को देखा है,
रेगिस्ताऩ समंदर में बदलते देखे हैं।

2.
आसमां के मुखड़े पर लटकी मौत की लट सी लग रही है ,
मैं कितने दिनों से देख रहा हूँ दुनियां मरघट सी लग रही है,
देख रहा हूँ पहाड़ ख़ूबसूरत दिख रहे हैं किसी हसीना की तरह,
ना जाने क्यों मुझे ये उनके घर की छत सी लग रही है,
लाशों के ढेर लग रहे हैं जान , जान पे जान जा रही है,
ये कोई बीमारी नहीं उसका ख़ेल है उसकी हठ सी लग रही है।

3.
छलांग लगाओ दरिया में क्या पता किनारा मिल जाये,
आप भी हमारी ग़ली में आईये हो सकता कोई सहारा मिल जाये।

4.
कुछ दिनों से सोच रहा था कोई अच्छा काम करूँ ,
सोचा आज आपसे मिलता ही चलूँ।

5.
उनकी ज़ुबां पे मेरा नाम इस कदर रहता है,
जैसे झूठ बन गया हूँ मैं उनके लिए,
उससे मिलने की यूँ ज़िद न कर,
कभी वक़्त ने वक़्त निकाला है किसी के लिए ।

6.
आप इश्क़ में लुट जाने की परवाह करते हैं ,
दीवाने तो इसमें मर जाने की इल्तिज़ा करते हैं,
आपकी तबियत तो अच्छी भली है,
वरना लोग तो मरने की दुआ करते हैं।

7.
सुबह उठते ही हमारी आँखें नम होती हैं ,
ऐसा लगता है जैसे ख़्वाहिशें ख़त्म होती हैं ,
बड़ा दर्द होता जब ऐसे ख़्वाब देखती हैं ,
जिसके पूरा होने की उम्मीदें बहुत कम होती हैं

8.
शराब की एक नदी बनाओ ,
क़ाग़ज़ की कश्तियाँ चलाओ ,
पता जब चले ख़ेल ख़त्म है ,
आग लगाओ और मर जाओ।

9.
वो जब अपने ख़ून से ख़त लिख़ते हैं,
मेरी नाराज़गी को भी मोहब्बत लिखते हैं ,
मैं गुस्से में ख़त को जला देता हूँ ,
इस गुस्ताख़ी को वो ख़त में इबादत लिख़ते हैं।

10.
अभी तुमने होश संभाली नहीं है ,
पटाख़े मत बजाओ आज दीवाली नहीं है ,
सारा जहां शहद में ज़हर दे रहा है ,
साहब दुनियां अभी ख़तरों से ख़ाली नहीं है।

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यशु जानयशु जान (9 फरवरी 1994-) एक पंजाबी कवि और लेखक हैं। वे जालंधर सिटी से हैं। उनका पैतृक गाँव चक साहबू अप्प्रा शहर के पास है। उनके पिता जी का नाम रणजीत राम और माता जसविंदर कौर हैं । उन्हें बचपन से ही कला से प्यार है। उनका शौक गीत, कविता और ग़ज़ल गाना है। वे विभिन्न विषयों पर खोज करना पसंद करते हैं। वे अपनी उपलब्धियों को अपनी पत्नी श्रीमती मृदुला के प्रमुख योगदान के रूप में स्वीकार करते हैं।

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