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अन्नदाता पर कविता

अन्नदाता पर कविता

इस देश का अन्नदाता चारों तरफ से बेहाल है,
कोई पूछने वाला नहीं उनके क्या हाल हैं।

किसान सड़क पर कब से बैठे हैं,
इतनी भयंकर सर्द ठंड में भी डटे हैं।

जिसका अन्न खा कर चल रहे हो,
वह है तो आज तुम पल रहे हो।

कहने को तो हर कोई खड़ा हो जाता है,
हक के लिए हिम्मतवाला ही लड़ पाता है।

सूखा हो या अकाल जो तुम्हें देता है अनाज,
उस किसान पर बच्चा-बच्चा करता है नाज।

बंजर भूमि को भी हरा कर देता है,
अनाज से हूं सारे भंडार भर देता है।

कर्जा होते हुए भी अपना खेत बोता है,
फसलें ठीक ना हो तो चुपके से रोता है।

सरकारे भी मुआवजे के नाम पर दिलासाए देती है,
चंद्र रूपट्टी पकड़ा कर सारी आशाए छीन लेती है।

आंसुओं से अपने वो खेत को सींचता है,
हल में बेल ना हो तो खुद बेल बनकर खींचता है।

महल में रहने वालों किसान के दर्द को तुम क्या समझ पाओगे,
तुम्हारे कारण ही इसे हर हाल में है इसका जवाब तुम नहीं दे पाओगे।

उसकी जिंदगी में कभी बदलाव नहीं आया यह सत्यता है,
जो पहले था वही आज है एक किसान की वास्तविकता है।

क्या बूढ़ा क्या बच्चा सब साथ है,
सब के मिले हाथ में हाथ है।

पढ़िए :- किसान का दर्द कविता | एक किसान कल


दास बैरागी

यह कविता हमें भेजी है दास बैरागी जी ने इंदौर (म. प्र.) से। दास बैरागी जी 12वीं के छात्र हैं और कवि समाज सेवा आदि का काम भी करते हैं।

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