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स्वर्ग की कल्पना पर कविता

स्वर्ग की कल्पना पर कविता

सहसा पहुंचा स्वर्ग द्वार पर
दृश्य वहां के बड़े निराले थे।
उड़ती मछली तैरते विहंग
सबका मन मोहने वाले थे।।

धरा फूलों से भरी हुई थी
सुगंध फैली थी चारों ओर।
दूध की नदी में तैर तैर कर
नृत्य कर रहे थे चंचल मोर।।

हवा चल रही थी मतवाली
जैसे मधुर सा कोई संगीत।
वहां के फरिश्ते हर एक पल
गाते थे सदैव प्रेम का गीत।।

दुःख न वहां प्रतीत हुआ था
खुशियों की बिखरी थीं वात।
अंधकार शब्द अनजाना था
स्मृतिमय सी थी खग बारात।।

कौवो की आवाज सुरीली थी
कोयल कांव कांव करती थी।
जुगनू तारो की रोशनी को
अपने जीवन में भरती थी।।

हर कोई वहां पीता था दूध
और खाते थे जादू के फल।
इसलिए सबके जीवन से
कपट,क्रोध जाते थे निकाल।।

वहां पेड़ों पर सब सोते थे
एक पल भी न कभी रोते थे।
जीवन का अनमोल समय
निराश होकर नहीं खोते थे।।

अचानक मां ने मुझे जगाया
सच नहीं वह निकला सपना।
परंतु घोर परिश्रम करने से
सपना भी हो जाता है अपना।।

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नमस्कार प्रिय मित्रों,

सूरज कुमार

मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।

क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।

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