पर्यावरण पर कविता इन हिंदी
मूक पेड़ बोल नहीं सकते हैं
परन्तु दर्द उनका महसूस करो।
तुम एक नन्हा सा वृक्ष लगाकर
जीवन में खुशी की किरण भरो।।
दुखद जीवन से पतझड़ को तुम
वृक्ष लगाकर बनाओ सावन।
चीख चीख कर पुकार रही तुम्हे
वृक्षों से भरो धरती का आंगन।।
प्रकृति ने नहीं कभी मानव से
बदले में नहीं कुछ लिया है।
जब जब मानव को भूखा देखा
फलों से जीवन भर दिया है।।
पुत्र मानकर तुम्हे जिस वसुधा ने
अपने आंचल में दिया है स्थान।
बदले में तुमने उसे काट कर के
प्रकृति को बनाया है रेगिस्तान।।
अभी भी पर्याप्त समय है प्यारे
मासूम वृक्षों को काटना बंद करो।
इनमें समाया है जीवन तुम्हारा ही
जानकर प्रभात को ना अंध करो।
यदि प्रकृति अभी भी शान्त है
परंतु रख सकती है प्रलय रूप।
कर सकती है आंधी और बरसात
बरसा सकती अग्नि समान धूप।।
नन्हे से पेड़ पौधे लगाकर तुम
प्रकृति के संग मिल जुलकर रहो।
यदि कोई इन पर करें दुखद प्रहार
रोको उसको चुपचाप तुम न सहो।
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नमस्कार प्रिय मित्रों,
मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।
क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।
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