बचपन के दिनों को और बचपन की मस्ती को कौन भूलता है। खासकर सुबह सूरज के उठने के साथ ही उठना और मित्रों संग खेलना। उन्हीं दिनों को शब्दों में उतारा गया है इस ( Poem On Bachpan In Hindi ) बचपन की यादें कविता ” बचपन की स्मृतिमय प्रभात ” में :-
बचपन की यादें कविता
भूल नहीं सकते हैं हम
बचपन की स्मृतिमय प्रभात,
सम्पूर्ण सुखद क्षण भरे पड़े थे
मृदुल थी विल्यों की मलय वात।
सखा सभी मिलजुल कर के
बिना भेद भाव के खेले थे,
यौवन का न कोई अनुभव था
जिस कारण न हम अकेले थे।
विहंगों की सुरीली धुन पर
जहाँ उठाना हमने सीखा था,
अम्बर की रिमझिम बारिश में
संग गात के नन्हा हृदय भीगा था।
भानु तो हम सबका मित्र था
लालिमा को उसकी जी भर देखा था,
कागज में मन की बातें लिखकर
उस और राकेट बनाकर फेंका था।
समस्त सखा करते थे शरारत
ठंडे विटपों की छाँव में,
न साकार हुआ स्वप्न बचपन का
जो सबने देखा गाँव में।
खेल भी अद्भुत निराले थे
डोर से पतंग अम्बर ले जाते थे,
टूटी पतंग को दौड़ लगाकर
सहजता से वृक्ष पे चढ़ जाते थे।
व्यतीत स्मृति को भूल नहीं सकता
मुझे बचपन का हर क्षण ज्ञात है,
पुनः वहां पहुँच नहीं सकता
पास मेरे नन्हा सा न वो गात है।
रंगों की दुनिया में रहकर
अद्भुत बनाते थे कागज़ पर चित्र,
रंग यादों के न कोई मिटा सका
खेलते थे ऐसी होली विचित्र।
मन न किसी के विचलित थे
था खुशियों का खज़ाना सबकी झोली में,
दादा-दादी, मम्मी-पापा के मन को
मोहने की कला थी प्यारी बोली में।
बिन बचपन के हुआ मैं दीन
सलिल बिना हो जैसे मीन
लुप्त हुए दृश्य वो भोले-भाले
बचपन लिया समय ने छीन।
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नमस्कार प्रिय मित्रों,
मेरा नाम सूरज सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।
क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।
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धन्यवाद।
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