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बकरे पर हिंदी कविता
जन्म बकरी ने बकरे को दिया भला,
उठ खड़ा होकर बकरा जमीं पर चला है।
उछले कूदे शरारत करे रात दिन
बकरी रह न सके अपने बच्चे के बिन,
दूध पिलाती सहलाती बड़े प्यार से
कहती जाना ना दूर छोड़ मुझको लला,
जन्म बकरी ने बकरे को दिया भला
उठ खड़ा होकर बकरा जमीं पर चला है।
आँखें चमकीली काया थी सुंदर बड़ी
पूँछ लगती थी जैसे कोई फूल झड़ी,
चाल चलता बड़ी मस्त वो झूम कर
नटखट इतना जमीं पर वो खाए कला,
जन्म बकरी ने बकरे को दिया भला
उठ खड़ा होकर बकरा जमीं पर चला है।
दिन गुजरते गए बकरा बढ़ता गया
खून यौवन का बकरे में चढ़ता गया,
क्या पता उसको किस्मत में लिखा है क्या
खाए मुझको वही जिसके हाथों पला,
जन्म बकरी ने बकरे को दिया भला
उठ खड़ा होकर बकरा जमीं पर चला है।
एक कसाई ने आकर देखा उसे
पाला बकरे को उसने ही बेचा उसे,
दिन मुसीबत के बकरे के अब आ गए
ताना बकरे की गर्दन पर अब दूरकला,
जन्म बकरी ने बकरे को दिया भला
उठ खड़ा होकर बकरा जमीं पर चला है।
दर्द इतना हुआ बकरा सह न सका
बेजुबां किसी से कुछ कह न सका,
दया आई नहीं बिलकुल शैतान को
काट डाला छुरे से बकरे का गला,
जन्म बकरी ने बकरे को दिया भला
उठ खड़ा होकर बकरा जमीं पर चला है।
जुर्म धरती पर इतना है होने लगा
जाग जा ईश्वर अब क्यों तू सोने लगा,
नाम तेरा पुकारे जो प्राणी कोई
उसके सिर से फिर टल जाएगी हर बला,
जन्म बकरी ने बकरे को दिया भला
उठ खड़ा होकर बकरा जमीं पर चला है।
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यह रचना हमें भेजी है रनवीर सिंह जी ने ग्राम जऊपुरा, सिकंदरा, आगरा से।
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