छाया वसुधा पर विकट अंधेरा कविता

छाया वसुधा पर विकट अंधेरा

पल में बदला विचित्र मौसम
छाया वसुधा पर विकट अंधेरा,
वृक्ष व मानव कर रहे कामना
कब प्रकट होगा मधुमय सवेरा।

सुगंधित प्रसून हुए उदास
समय का अदभुद चक्र चला,
भौरा पुष्प के भीतर बैठकर
कह रहा कब होगा मेरा भला।

नील गगन भी व्यथित हुआ
नही गूंज रही खग की बोली,
शान्त हुई शीतल सी पवन
दृश्य देखकर के प्रकृति डोली।

नभ में पक्षी नहीं आते नजर
सबने आश्रय लिया बसेरों में,
मधुर सुबह का स्वप्न आंखो में
देखे अति घन घोर अंधेरों में।

मानव ने अनुमान लगाकर
अपने घरों में प्रवेश किया,
एक नन्हा सा दीप जलाकर
सामना करने का संदेश दिया।

फिर जुगनू कुछ क्षण में दमके
एक आशा की किरण लिये,
जैसी सूखी नदियों में मीन
एक बूंद से जीवन की सांस लिए।

फिर धीरे से अंध लुप्त हुआ
प्रखर भानू के आ जाने से,
मीठा गीत गाकर सत्कार किया
विहंगों ने प्रकाश छा जाने से।

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नमस्कार प्रिय मित्रों,

सूरज कुमार

मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।

क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।

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