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Beti Par Hindi Kavita
बेटी पर हिंदी कविता

बेटी पर हिंदी कविता

विवाह की दहलीज पर बैठी।
वह वैदही सी लगती है ।।
कर सोलह सिंगार लाल जोड़े में ।
बहुत खूबसूरत सी लगती है ।।

फिरों की विधि में बैठी ।
माता-पिता का स्वाभिमान लगती है।।
सब कहते हैं बेटियां है पराया धन ।
पर उन बेटियों के मन में।।
कभी ना आया परायापन ।

ना जाने वह घर छोड़कर ।।
जाने के बाद कितनी बार ।
मन ही मन रोई है ।।
अपने नाम और कपड़ों ।
को बदलने के बाद ।।

पीहर की वह मस्ती भरी यादें ।
वह खिल-खिलाकर हंसना ।।
सब कुछ छोड़ कर ।
सलीके से रहने लगती है।।

मां कहती थी थोड़ा काम किया कर।
पापा कहते थे यह तो बच्ची है ।।
अपनी सारी जिद्द छोड़कर अब ।
वह मन मसोस रहने लगती हैं ।।

घर गलियां और चौबारा ।
सुने कर के वो चली गई ।।
बेटी तेरे बिन घर का ।
कोना कोना मुरझा जाएगा।।
बेटी तू मेरा स्वाभिमान है ।
तेरी जुदाई के बाद भी ।।
हक है पूरा मीनू माँ-पापा पर तेरा..


रचनाकार का परिचय

मीनाक्षी राजपूरोहित " मीनू "

नाम – मीनाक्षी राजपूरोहित ” मीनू “
पिता – विशन सिंह राजपूरोहित
माता – पुष्पा राजपूरोहित
पता – पोस्ट – बस्सी
ज़िला – नागौर राजस्थान ,पिन, 341512
शिक्षा – स्नातकोत्तर हिन्दी साहित्य , समाजशास्त्र , इतिहास (महर्षि दयानन्द सरस्वती यूनिवर्सिटी अजमेर (राजस्थान)
कार्यक्षेत्र – गृह कार्य एवं विद्यार्थी

मीनाक्षीजी की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं इसके साथ ही उन्हें साहित्य जगत में कई सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं।

आत्मकथ्य – लेखन कुछ नया करने का एक आयाम है। अपने भाव, मन की मनोदशा को उतारना लिखना। क्योंकि साहित्य के बिना संस्कृति उदासीन है । मेरे जीवन का उद्देश्य है कि मेरी रचना पढ़कर किसी के जीवन को अगर दिशा मिली तो मेरा लिखना सफल होगा ।लिखना कोई मनोरंजन नहीं होता यहां लेखक अपने ह्रदय की गहराइयों से रचना को उकेरता है । हम हमारे जीवन को एक दिशा दे सकते हैं। “एक कवि की कल्पना शब्दों में बंधी नहीं होती” हम सृजन को किसी भी रुप में देश -भक्ति ,राष्ट्रीय एकता, प्रेम,मानवता माँ-पिता …
अत!साहित्य का आधार ही जीवन है। साहित्यकार आत्मसंतुष्टि ,
सुखानुभूति ,प्रेरणा ,जागृति संवेदना वह मानवीयता को प्रभावित करना है।लेखन अपने खुद के मनोभावों को व्यक्त करना जनमानस तक अपनी बात पहुंचाना । अपने काव्य द्वारा सामाजिक चेतना को जगाना में चाहती हूँ कि मैं ऐसा कुछ लिखूं कि मेरे लिखने से अगर मैं किसी के विचार बदल पाई तो मैं धन्य समझूंगी । बचपन से लिखने का शौक था। पर कोराना काल मैं फिर से लिखना शुरू किया। वैसे माँ बीमार थी तो माँ पर कुछ ना कुछ लिखना आदत हो गई तो मेरे बड़े जीजा राज कंवर ने मुझे लिखने के लिए जो प्रोत्साहित किया उसके लिए हृदय से आभारी हूँ । आप सभी बड़ो का व परिवार जन का आशीर्वाद बना रहे ऐसी उम्मीद के साथ अपनी लेखनी को आगे बढ़ाने की कोशिश करती हूँ

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