“ तुकतुक की रेल ” नाम के अनुसार ही इस किताब में हास्य-व्यंग्य के ऐसे डिब्बे फिट हैं जो 7 अलग-अलग स्टेशनों कि सैर करवाते हैं। हम बात कर हैं आदरणीय “ हरजीत सिंह तुकतुक ” जी द्वारा रचित “ तुकतुक की रेल ” किताब के बारे में। तो आइए जानते हैं किताब के बारे में थोड़ा विस्तार से। और हाँ ये सिर्फ एक किताब नहीं उनके 30 वर्षों के सफर की बेहतरीन रचनाएं हैं।

पुस्तक समीक्षा तुकतुक की रेल

किताब के बारे में:

शीर्षक : तुकतुक की रेल

लेखक : हरजीत सिंह तुकतुक

प्रारूप : कविता संग्रह

लेखक वेब पता : www.harjeetkhanduja.com

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पुस्तक समीक्षा तुकतुक की रेल

किताब का मुख्य सार:

पहला भाग पंचतंत्र

जिस प्रकार पंचतंत्र की कहानियों मे पशु-पक्षियों को मुख्य किरदार बनाया गया है। उसी प्रकार इस भाग की 5 कविताएं कुत्ते, बंदर और तोता-मैना के इर्द-गिर्द घूमती हैं। कविता “ कुत्ता बीमार हो गया ” में

डॉक्टर बोल,
इसका रोग मेरी समझ में नहीं आता है।
लगता है इसे किसी आदमी ने काटा है।

के जरिए कवि ने बताने कि कोशिश की है कि कैसे एक घूसखोर डॉक्टर पैसे के लिए कुछ भी कह सकता है। ऐसे ही अगली कविता “ बड़े काम का बंदर में ”

बड़े बाबू बोले,
चाहता तो मैं भी यही हूँ कि इन्हें किसी जंगल में छुड़वाऊँ।
पर ये तो बताइये कि जंगल कहाँ से लाऊँ।

आपने जंगल काटकाट के,
बस्तियां बसाई हैं।
आसमान को छूती हुई बिल्डिंगें बनाई हैं।

सुनने मे बुरा लगेगा पर तथ्य कह रहे हैं।
बंदर आप के घर में नहीं
आप बंदरों के घर मे रह रहे हैं।

इस हास्य कविता में व्यंग्य के माध्यम से कवि ने ऐसी बात जो सामाजिक सत्यता है, को बड़े ही मजेदार ढंग से प्रस्तुत किया है।

दूसरा भाग स्वदेश

कवि इस भाग मे देश की दो तस्वीरों को इन कविताओं में बखूबी उतारने में सफल रहे हैं। “पंद्रह अगस्त” और “तिरंगा” कविता के जरिए जहाँ यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि हम आजाद होकर भी किस प्रकार आज भी गुलाम हैं। ऐसे गुलाम कि हमें अपनी गरीबी दूर करने के लिए तिरंगा तक बेचना पड़ रहा है।

“छोटू” कविता में एक ढाबे पर काम करने वाले लड़के के मुंह से

हमने कहा, तब तो जानते होंगे,
तुम्हें शिक्षा का अधिकार भी है।
वो बोला, अच्छी तरह जानता हूँ,
पर मैंने पढ़ाई छोड़ दी है।

हमने कहा, छोटू इस युग मे पढ़ना जरूरी है।
बिना शिक्षा के तो मानो जिंदगी अधूरी है।

वो बोला,
मेरा मास्टर भी मुझे यही समझाता था।
पर खुद टूटी हुई साईकल से स्कूल आता था।

निकले यह शब्द भले ही हास्यपूर्ण हों परंतु शिक्षा व्यवस्था का कटु सत्य हैं। कविता “आतंकवादियों का मज़ाक” और “शाहरुख खान” ऐसे विषय पर आधारित है जिसका आनंद कविता को पढ़कर ही लिया जा सकता है।

तीसरा भाग शादी के साइड इफेक्ट

पिता जी बोले, मेरा लड़का ईमान रखता है।
जो आजकल करोड़ों में बिकता है।

वो बोले, पर आपका यह ईमानदार बेटा,
घर की रोटी कैसे चलाएगा।
खुद भूखा मरेगा तो,
मेरी बेटी को क्या खिलायेगा।

आप इसे यहाँ से ले जाइये।
पहले उसे किस्तों में ईमान बेचना सिखाईये।
जिस दिन इसे किस्तों में,
ईमान बेचना या जाएगा।

उस दिन इसे इससे भी ज्यादा रेट पर,
कोई भी ले जायेगा।

इससे बेहतर कोई क्या ही लिख सकता है। शादी से संबंधित इस भाग में शादी और उसके बाद शादी से जुड़ी समस्याओं को एक बार फिर सामाजिक समस्याओं के साथ प्रस्तुत किया गया है। हालांकि यह सब कविताएं कवि कि शादी से पहले की हैं। शायद बाद में ऐसी कविताएं लिखने कि हिम्मत न बचती हो।

“दूल्हों की सेल” के बाद “लुगाई की खोज”, “लड़का या लड़की”,”मेरा भगत सिंह” और इंन सब के बाद “प्राइमरी कि पढ़ाई” पढ़ने के बाद ऐसा लगता है जैसे ये मात्र एक कविता नहीं हमारे ही जीवन कि सच्चाई है।

चौथा भाग – ओह माई गॉड

“भगवान से मुलाकात”, “पिछले जन्म की कहानी”, “अगले जन्म की कहानी” कविताओं में हिन्दू-मुस्लिम की लड़ाई और जात-पात पर व्यंग्य है। साथ ही भारत में लड़कियों की स्थिति पर सोचने को मजबूर कर देती है।

पाँचवाँ भाग – उत्सव

यह एक ऐसा भाग है जिसे पढ़ कर लगता है कि इस भाग मे सभी कविताएं आज के परिवेश मे लिखी गई हैं। मगर “कोविड” कविता को छोड़ कर बाकी की सभी कविताएं हर समय वही ताजगी लिए रहती हैं।  चाहे आप उन्हें आज पढ़ें या 10 साल बाद। कविताएं पढ़ कर यदि आप गुजरे सालों के बारे मे सोचेंगे तो भी वही सब पाएंगे जो हरजीत सिंह जी की कविताओं मे लिखा है।

छठवाँ भाग – दास बाबू की दास्तान

कवि के काल्पनिक चरित्र दासबाबू के माध्यम से एक ऐसे व्यक्ति कि हालत बयान करने का प्रयास किया है जो है तो शरीफ और उसकी यही शराफत उसी पर भारी पड़ जाती है।

सातवाँ भाग – गोलमाल है

छह भाग पढ़ने के बाद जब आप राजनीति और सामाजिक समस्याओं से बाहर आएंगे तो आपको लगेगा कि सचमुच ही यह गोलमाल है। यह एकमात्र भाग है जिसमें आपको “भड़ाम रस”, “शृंगार रस” , “वीर रस”, “हाइकु” और “नर्सरी राइम्स” सब कुछ मिलेगा लेकिन सब कुछ हास्य रस में।

खास बातें:

इस किताब की लगभग सभी रचनाएं शुरू तो हास्य से होती हैं लेकिन उनका अंत किसी न किसी सामाजिक समस्या को सामने ले आता है। यह किताब आम बोलचाल की भाषा में तुकबंदी से 33 कविताओं से सजी हुई है। जिसमें हर कविता अपने आप में एक अजूबा है।

गंभीर विषयों में भी हास्य निकाल लेना कोई साधारण बात नहीं होती। लेकिन हरजीत जी की हर कविता पढ़ कर ऐसा लगता ही नहीं कि यह कोई बड़ी बात है। आम जन की समस्याओं मे भी हास्य ढूँढना वाकई एक बहुत बड़ी कला है।

कमियाँ:

ज्यादातर हास्य कविताएं देश की बिगड़ी हुई हालत पर ही टिप्पणी करती हैं। लेकिन जो भी कविताएं हैं वो लाजवाब हैं।

और अंत में :

तो कुल मिल कर यही कहना चाहूँगा कि ज़िंदगी में दुख-सुख, उतार-चढ़ाव तो आते रहेंगे लेकिन ये ज़िंदगी भी इसी तरह चलती रहेगी। बस तुकतुक जी की ये हास्य भरी बातें आज और कल भी हमारे समाज पर व्यंग्य कसती रहेंगी।

तो आप भी आनंद लीजिए हरजीत सिंह तुकतुक जी की कविताओं का उनकी किताब से। जोकि आप नीचे दिए गए लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं।

कवि परिचय :

हरजीत खंडूजा जी वक्ता, लेखक, कवि और मानव संसाधन विभाग में हैं। हरजीत पिछले 30 वर्षों से काव्यपाठ कर रहे हैं। इस पुस्तक को प्रकाशित करने के पीछे उनके  गुरु श्री अशोक चक्रधर जी का भी योगदान है जिन्होंने उन्हें उनके काव्य संग्रह को प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया।

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