बुजुर्गों का सम्मान पर कविता

बुजुर्गों का सम्मान पर कविता

बुजुर्गों का सम्मान पर कविता

घर-घर में बढ़ गया कपट,
कोने में वृद्ध गए सिमट,
रोज-रोज होती खटपट,
सब करते इनसे नफरत।

हो जाते जब वृद्ध अपंग,
 जीवन हो जाता बदरंग,
नहीं कोई अब रहते संग,
अजीब है दुनिया का ढंग।

वृद्ध सारे करते विषपान,
बच्चे करते सब अमृतपान,
वृद्धजनों की हम सन्तान,
वृद्ध बनते सबकी पहचान।

कुछ वृद्धजन हैं धनवान,
विदेश में रहे उनकी सन्तान,
सोच-सोचकर हैं परेशान,
खतरे में रहते उनके प्राण।

ताके कभी न पुत्र जवान,
 मिट गए उनके अरमान,
वृद्ध की लाठी,वृद्ध की जान,
वही है अब इनकी संतान।

वृद्धजनों का न करें उपहास,
बच्चों के लिए किए उपवास,
रक्खें उन्हें अपने पास,
नहीं जाएं तू कभी प्रवास।

नहीं हैं वृद्धजन अजनवी,
बनके रहे सदा तपस्वी,
बड़े हैं वे जीवन अनुभवी,
न बनाएं जीवन कड़वी।

नौजवानों को है धिक्कार!
न करें कभी उन पर प्रहार,
तुम्हें मिला जीवन उपहार,
पूरा करें उनका इजहार।

बच्चे वृद्ध हैं एक समान,
नहीं करें वृद्ध का अपमान,
वे हैं तुम्हारे अपने प्राण,
वे भी रहे थे कभी जवान।

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रचनाकार का परिचय

सदानन्द प्रसाद

यह कविता हमें भेजी है सदानन्द प्रसाद जी ने संग्रामपुर,लखीसराय ( बिहार ) से। इनकी शिक्षा स्नातक,डिप. इन.फार्मेसी है। ये योग प्रशिक्षित हैं व भारतीय खाद्य निगम सेवा से निवृत्त हैं। साथ ही बिहार राज्य उपभोक्ता सहकारी संघ,लि., पटना में निदेशक भी रहे हैं।

प्रारंभ से ही समाज सेवा में इनकी अभिरुचि रही है व समाजवादी विचार धारा रही है। कर्पूरी टाइम्स एवं निरोग संवाद पत्रिका का संपादन कार्य भी इन्होंने किया है। विज्ञान का छात्र होने के बावजूद बचपन से ही हिंदी लेखन-पाठन में अभिरुचि रही है।
सामाजिक ,सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं ग्रामीण पृष्ठभूमि पर इनकी काव्य रचनायें हैं। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन से जुड़ा हैं और हिंदी काव्य गोष्ठी में भाग लेते हैं।

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