हास्य व्यंग्य कविता लक्ष्मी और सरस्वती | Hasya Vyangya

पढ़िए कवि और चोर की नोकझोंक वाली हास्य व्यंग्य कविता लक्ष्मी और सरस्वती ( Hasya Vyangya Kavita Laxmi Aur Saraswati ) :-

हास्य व्यंग्य कविता लक्ष्मी और सरस्वती

हास्य व्यंग्य कविता लक्ष्मी और सरस्वती

एक रात, एक चोर, कवि के घर,
करने चला गया चोरी,
उम्मीद थी कि, मिलेगी वहाँ
नोटों से भरी कोई तिजोरी,

मुझे तो लगता है कि
उसका दिमाग हो गया था खाली,
इसीलिए उसके दिमाग में
पुलाव बन रहे थे ख्याली,

रात का घोर सन्नाटा था
और कमरे में मोमबत्ती थी,
कवि के हाथों में पैन था
और साथ में हुनरपरस्ती थी,

तलाश थी अगली पंक्ति की,
कविराज बड़े परेशान थे,
चोर को लगा, वसीयत लिखने में
कविराज अन्तर्ध्यान थे,

कविराज फंसे थे, शब्द, छन्द
और कविता के मझधार में,
चोर उठा मौके का फायदा,
घुस गया घर बदबूदार में,

बदबू में घुसता चला गया चोर,
तिजोरी की चाह में,
कमरा दर कमरा छान लिया,
कमी हुई उत्साह में,

हाथ लगा किताबों पर,
गिरी किताबें जोर से,
कवि का ध्यान भंग हुआ,
हुए अचानक शोर से,

बल्ब जलाया कमरे का,
आंख तब चोर से चार हुई,
चोर कवि को देख कर,
बन गया मानो छुईमुई,

कवि बोला गुस्से में,
मेरे घर में क्या करते हो तुम,
जब चांद आ चुका है पूरा
और सूरज पूरा हुआ है गुम,

घुड़क कर चोर बोला,
चोर हूँ, चोरी करता हूँ,
मेहनत की खाता हूँ,
किसी के बाप से नहीं डरता हूँ,

कहाँ पर रखे नोट हैं तूने,
कहाँ तेरी तिजोरी है,
इतना बड़ा कवि है तो फिर
हाथों में क्यों कटोरी है,

और ना मुझको आंख दिखा,
काम मेरा अगर चोरी है,
तूं भी मुझसे कम नहीं,
तेरा काम साहित्यिक चोरी है,

कवि बोला, तूं चोर है अगर,
पैसे सारे दे दूंगा,
कविताएं सुननी होंगी मेरी,
शर्त मगर ये रखूँगा,

सुनकर हुआ उदास चोर
और जाने लगा बाहर घर से,
दौड़ के कवि ने ताला
दरवाजे पे लगाया अन्दर से,

कवि बोला, बैठ जाओ,
मैं कविता तुम्हें सुनाता हूँ,
भागने की कोशिश की तो
पुलिस को अभी बुलाता हूँ,

सुन कर चोर की खिसक गई,
धरती पांव के नीचे से,
रास्ता भी ना था कोई,
भागने का बाग बगीचे से,

कहाँ फँस गया, मैं तो
आया था पैसों की खोज में,
यहाँ तो कवि ने बिठा दिया,
कविताओं के ब्रह्मभोज में,

कवि की कविताएं सुनता रहा
फिर बैठा बैठा चोर,
कवि ने भी तब तक ना छोड़ा,
जब तक हुई ना भोर,

हिम्मत जुटाकर चोर बोला,
बात सुनो कविराज मेरी,
क्षमा कीजिए, इस से ज्यादा
क्षमता नहीं है आज मेरी,

सुबह होने वाली है,
मुझको अब तो जाने दीजिए,
इन कविताओं के बदले
कुछ धन भी आने दीजिए,

बोला कवि, अभी कैसे,
अभी तो आधी बाकी है,
आधी सुनकर भागेगा,
ये सब तेरी चालाकी है,

चोर बोला, बस रहम करो,
मेरा निकल कचूमर जाएगा,
आधी से ये हाल है,
बाकी से श्रोता मर जायेगा ।

कुछ पैसे अब दे विदा करो,
कुछ तो मुझ पर रहम करो,
इतनी कविताएं बरसा दीं,
थोड़ा सा तो शरम करो,

कवि बोला, अब जा तूं,
लेकिन पैसों की बस खैर है,
मालूम नहीं तुम्हें?
सरस्वती और लक्ष्मी में कितना बैर है।

पढ़िए :- हास्य कविता “लाइब्रेरी और राजनीति”


डा. गुरमीत सिंहडा. गुरमीत सिंह खालसा कालेज, पटियाला ( पंजाब ) से गणित विषय में प्राध्यापक के पद आसीन हैं। आप मर्यादित और संजीदा भाव के धनी होने के साथ-साथ आप गुणीजनों और प्रबुद्धजीवी में से एक हैं। आप अपने जीवन के अति व्यस्ततम समय मे से कुछ वक्त निकाल कर, गीत और सँगीत के शौक के साथ रेख्ता, शेर-ओ-शायरी को अवश्य देते हैं। आपकी गणित विषय पर 25 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

“ हास्य व्यंग्य कविता लक्ष्मी और सरस्वती ” ( Hasya Vyangya Kavita Laxmi Aur Saraswati ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे रचनाकार का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।

धन्यवाद।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *