शिक्षक पर हास्य कविता ( Shikshak Par Hasya Kavita ) :- कहते हैं अध्यापक समाज का भाग्यविधाता होता है। समाज के विकास में योगदान देने वाले महापुरुषों के जन्मदाता हमारे गुरु हमारे अध्यापक ही होते हैं। परन्तु पिछले कुछ सालों में हालत और शिक्षा व्यवस्था इस कदर बदली है जिसने अध्यापक की स्थिति को एक सामान्य मजदूर जैसा बना दिया है। उस पर पाबंदियां लग गयी हैं।

आज गिर रहे शिक्षा के स्तर का यह भी एक कारण है। विद्यालयों में क्या होता है शायद ही  इस से कोई अनजान हो। ऐसी ही एक घटना जो आज कल आम तौर पर हर शहर के स्कूल में देखने को मिल जाएगी, प्रस्तुत कर रहे हैं डा. गुरमीत सिंह जी आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर तंज कसता बेहतरीन व्यंग्य ” शिक्षक पर हास्य कविता ” में :-

शिक्षक पर हास्य कविता

शिक्षक पर हास्य कविता

छात्र ने कहा, छिकम छीक बत्तीस
जबकि हकीकत में है छत्तीस,
गुरूजी को आया क्रोध
गलत जवाब का किया विरोध,

अपनी छड़ी को उठाया
और छात्र की ओर कदम बढ़ाया,
पहले तो छात्र डोला
फिर कड़क के बोला,

मास्टर जी, हाथ मत उठाना
वरना बाद में पड़ेगा पछताना,
माना कि मैं पहाड़ा नहीं जानता हूँ
परन्तु उत्पीड़न अधिनियम की
धाराओं को पहचानता हूँ,

गुरूजी मूर्ति समान जम गए
उसी स्थान पर थम गए,
इतने में प्रधानाध्यापक भी
शोर सुनकर आ गए
और मामला देखकर
सकपका गए,

आते ही तोड़ दी उन्होंने
मास्टर जी की छड़ी
अब तो मास्टर जी को भी डांट पड़ी,
पढ़ा कीजिये मास्टर जी,
सरकार का आदेश
अब संभव नहीं है कक्षा में
छड़ी का प्रवेश,

प्रताड़ना का दर्ज हो जाएगा
आप पर केस,
पेंशन के कागजों में
हो जाएगा निलंबन का प्रवेश,
गुरू जी हो गए पसीना पसीना
दिसंबर में आ गया जून का महीना,

इतने में छात्र ने आवाज लगाई,
गुरू जी मुर्दाबाद ,
और सारी कक्षा भी
हो गई उस के साथ,
प्रधानाध्यापक छात्र को
कोने में ले गए बहाने बहाने में,
आधा घंटा लगा दिया
उसको मनाने में,

समझौता किया कि गुरू जी
लिखित माफ़ीनामा तैयार करेंगे ,
वरना हम विद्यालय का
बहिष्कार करेंगे,

स्टाफ में आश्चर्य एवं
भय का अनूठा मिश्रण बरकरार था,
छात्र जान चुके थे कि
उत्तीर्ण होना उनका मौलिक अधिकार था,
गुरू जी के सामने था नहीं कोई रास्ता
अनुशासन खो रहा था अपनी पराकाष्ठा,

वो माफी मांगने को तैयार थे,
परन्तु अकेले में,
गरिमा खोना नहीं चाहते थे,
स्टाफ और छात्रों के मेले में,
सिर्फ बीस साल पुरानी छड़ी से
साथ ही नहीं छूटा था,
छड़ी के साथ परंपरा, प्रणाली
और मनोबल भी टूटा था,

प्रधानाध्यापक ने अपने कमरे में ले जा कर
कहा, मेरी नसीहत है,
वो अंदर आ रहा है, माफी मांग लो,
समय की जरूरत है,

छात्र ने अंदर आ कुर्सी पर बैठ
मेज पर पैरों का प्रबंध किया,
तेज हवा के झोंके ने शर्मिंदा होकर
द्वार बंद किया,
इसके बाद जो हुआ, यकीन मानिए,
हवा भी जम गई ,
शर्म के मारे मेरी
कलम भी यहीं पर थम गई,

समझ लीजिए गुरू का दर्द,
क्या पढ़ाए, पढ़ाना मुश्किल हो गया है,
छात्र अब छात्र नहीं रहा,
गुरू की इज्जत का क़ातिल हो गया है।


डा. गुरमीत सिंह

डा. गुरमीत सिंह खालसा कालेज, पटियाला ( पंजाब ) से गणित विषय में प्राध्यापक के पद आसीन हैं। आप मर्यादित और संजीदा भाव के धनी होने के साथ-साथ आप गुणीजनों और प्रबुद्धजीवी में से एक हैं। आप अपने जीवन के अति व्यस्ततम समय मे से कुछ वक्त निकाल कर, गीत और सँगीत के शौक के साथ रेख्ता, शेर-ओ-शायरी को अवश्य देते हैं। आपकी गणित विषय पर 25 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

शिक्षक पर हास्य कविता ” ( Shikshak Par Hasya Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे रचनाकार का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।

धन्यवाद।

This Post Has 2 Comments

  1. Avatar
    Utkarsh

    आज की शिक्षा प्रणाली का कड़वा सच है इस कविता में।।

  2. Avatar
    Pratima Bhargav

    यही आज का सच है

Leave a Reply