गीत कुँवारा लिख डाला

गीत कुँवारा लिख डाला

क्या व्यथा कहूँ रीते घट की
मरुथल पनघट भी पी डाला,
मन ने कोरे कागज पर
गीत कुँवारा लिख डाला।

आओ पढ़ना तुम कान्हा
प्रेम के ढ़ाई आखर को,
विरहिणी विरह में जाग रही
गागर में भर दो सागर को,
हल्दी कुमकुम के रंगों का
भाव है आज निराला,
इनकी कलकल की लय में
बस नाम तुम्हारा रट डा़ला।

मन ने कोरे कागज पर
गीत कुँवारा लिख डा़ला।

स्वप्नों को पाला नयनों में
अधरों पे राग सजा डा़ला,
बाँसुरी की धुन को पहना
साँसों की बना के माला,
बाट- बाट में दिन कटा
कटी बाट- बाट में रात,
मुरलीधर ना आया तो
मीरा ने पीया विष प्याला।

मन ने कोरे कागज पर
गीत कुँवारा लिख डा़ला।

दर्पण को देखूँ श्रृंगार करूँ
बनके छवि तेरी माँग भरूँ,
स्वप्न यही अंतिम है मेरा
तू मुझे वरे मैं तुझे वरूँ,
नयनों से नीर बहे छल-छल
प्यास हृदय में आ अटकी,
इस प्रीत-वरण की बेला में
मन-प्राण भोग चढ़ा डा़ला।

मन ने कोरे कागज पर
गीत कुँवारा लिख डा़ला।

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