हिंदी कविता – क्यों मरने लगे | Hindi Kavita Kyo Marne Lage

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हिंदी कविता – क्यों मरने लगे

हिंदी कविता - क्यों मरने लगे

व्यापार आँसुओं का करने लगे
वादों से भी अपने मुकरने लगे,
पटल के आचार्यों समझाओ
हम जीते जी क्यों मरने लगे।

एक दौर था सुकूँ से मुस्काते थे
बेशक ना थी आँगन में खुशीयाँ,
एक दौर था सुकूँ से गुनगुनाते थे
बेशक ना थी चमन व बगियां,
ख़ाक से उठ के जब खास बने
हर किसी की मलालत करने लगे,
पटल के आचार्यों समझाओ
हम जीते जी क्यों मरने लगे।

नारी के उत्थान, पतन की
कल तक बातें जो करते थे,
कहाँ गये वो जमा के रंगमंच
भाषणों में आहें भरते थे,
आज उसी नारी की इज्ज़त
देख लुटती ढ़ोग भरने लगे,
पटल के आचार्यों समझाओ
हम जीते जी क्यों मरने लगे।

सत्ता की मद में चूर हो गये
राजनीति के नूर हो गये,
वापस दौर चला वोटों का जब
भेड़िये एक नहीं भरपूर हो गये,
मरती लाज शर्म देख-देख अश्क
आँखों की कगा़रों से झरने लगे,
पटल के आचार्यों समझाओ
हम जीते जी क्यों मरने लगे।

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Praveen Kucheria

Praveen Kucheria

मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।

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