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हिंदी कविता अपना अपना भाग्य
संसार की अजब गजब है लीला।
कोई खाने के लिए मेहनत करता।
कोई पचाने के लिए मेहनत करता।
सबकी अपनी-अपनी है भाग्य की लीला।
एक कुत्ता है जो सुखी हड्डियों को खाता।
एक वह कुत्ता है जो महंगी कारों में घूमता।
सबका अपना-अपना है भाग्यदाता।
मेहनत, मजदूरी से कमाने वाला नही है खुशहाल।
लंपट घूसखोर बेईमान हो रहे है मालामाल।
सबका अपना-अपना है भाग्य का कमाल।
साथ- साथ पढ़े, साथ- साथ रहवासी।
पर एक बना अफसर
दूसरा बना चपरासी।
सब अपने-अपने भाग्य का खा सी
पढ़ा लिखा ज्यादा नही पर बन बैठे नेताजी।
दिन दूनी रात चौगुनी होती गई।
क्या करेंगे मूल्ला और काजी।
सबका अपना-अपना है भाग्य राजी।
लाख करो जतन।
यदि है भाग्य प्रबल।
कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।
दिनों-दिन बढ़ेगाउसका धन-बल।
सबको मिलता है अपने-अपने भाग्य का सम्बल।
समय से पहले और तकदीर से ज्यादा नहीं मिलेगा।
हंसराज हंस कहता है परम संतोषी ही सदा सुखी रहेगा।
“रचनाकार का परिचय
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