हिंदी कविता काफिला
चलो थोड़ा दूर चलें फासले तय करें
इस सड़क को नाप लें,
लंबा सा दिखता यह रास्ता
साथ में बिताते चलें,
कुछ तुम अपनी कहो
कुछ हम अपनी बताते चलें।
कहीं थक हार के बैठ जाओ तो
पीछे नहीं बस आगे ही देखना,
अपने सपने को दोबारा से जीना
इसी जज्बे को अपने अंदर जिंदा रखना।
अकेले हम नहीं अकेले तुम नहीं,
अपनी आशाओं को हवा दे के
चल पड़े हम कहीं तुम कहीं,
छोड़ घर बार , रिश्ते नाते
घर चले हम अपने सफ़र में आगे।
यादों का डेरा रोके हमें
बीते हुए पल मोह बनके ललचाए हमें,
नहीं सोचूंगा नहीं रुकूंगा
यह ठान के अपने सफर में
पहन विश्वास का जोगा कूद पड़े।
ठुकराया हुआ जमाने से
जीती हुई रेस में पीछे आने से,
टूटा टूटा सा आत्मविश्वास को जोड़ के
बढ़ चले हम सफर में आगे फिर से।
आलोचना की गठरी को सिर पर सजा के
अपनी बेबसी को हाथों की लकीर बना के,
निकल पड़े हैं संसार से परे
अपना नाम बनाने।
सफर जिसकी शुरुआत एक
बचपने की आड़ में हुई ,
उसको अपने उमंगों के काफिले से
एक नए इतिहास में डालेंगे।
ठान लिया है जो भी हो
अपने कदम आगे ही बढ़ाएंगे,
इस काफिले में अपनी एक
अलग पहचान बनायेंगे।
रचनाकार का परिचय
मेरा नाम रामेंद्र ओझा है मैं मध्यप्रदेश के भिंड जिले का रहने वाला एक छोटा सा कवि हृदय व्यक्ति हूं। मुझे बचपन से ही गाना नहीं उसके बोल में रुचि थी मैं यही सोचता रहता था कि गाने के बोल कौन लिखता होगा। बाद में पता चला कि इनके पीछे एक लेखक या कवि का हाथ ही रहता है बस सब से ही मुझ में लिखने की रुचि पैदा हो गई। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
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धन्यवाद।
Bahut hi sundar kavita… keep it up..
Nice