हिंदी कविता क्या लिखूं क्या छोड़ दूँ
शूल सा चुभता हर पल नित् कैसे वो वेदना तोड़ दू,
ख्वाहिश हुई इसे लिखने की,पर क्या लिखूं क्या छोड़ दूं।
कुछ वर्ष बीते है संगम धरा पर जो लग रहा है युगों समान,
अन्न ग्रासन भी इस देवधरा का लग रहा हिय से अपमान,
तज के सहन शीलता संस्कार, कैसे अवनि का छोड़ दूँ…
क्या लिखूं क्या……
दर्श से जिसके मोक्ष होता वो बह रही हैं समकल में,
इतनी निकट हैं सुरसरि फिर जानें क्यू विह्वलता हैं हिय में,
ये परम वेदना कर अंगीकृत, कैसे प्रतिकार छोड़ दूँ…
क्या लिखू क्या……
वक्त के साथ शोड़ित हो रहा वो अरमानों का रश्मिरथी,
किस मुख जननी को बताएं कितनी निशा बिन अन्न के बीती,
अवमानों से हो के अलंकृत,कैसे आशाएं छोड़ दूँ…
क्या लिखूं क्या……
जननी हैं नित राह देखती कब बन वारिध मैं आऊंगा,
कर के सम्मान सफलता से उनका अंक हर्षाऊंगा,
आशीष कर सोम प्रदान, ये चक्रव्यूह मैं भेद दूँ….
क्या लिखूं क्या छोड़ दूँ?
पढ़िए :- हिंदी कविता आख़िर क्यों होता है | Hindi Kavita Akhir Kyon
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है प्रवीण त्रिपाठी जी ने गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) से।
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