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हिंदी कविता मैं लिखता रहूंगा

हिंदी कविता मैं लिखता रहूंगा

मैं आज नहीं चिंगारी हूँ,
पत्थरों में भी दिखता रहूंगा।

मैं अपनी बोली, वचनों को,
शब्दों में लिखता रहूंगा।

मैं लोगों की व्यथा, ख़ुद की कथा,
को सुनता, सुनाता रहूंगा।

मैं विस्तार नहीं, आरम्भ हूँ,
विस्तार तक लिखता रहूंगा।

मैं लोक समाज धर्म अधर्म,
को एकता में पिरोकर रहूंगा।

शिक्षित समाज हो, संस्कृति ताज हो,
लेखन से ऐसा आगाज़ करूंगा।

मैं लिखता रहूंगा,
ख़ुद को बेदाग करूंगा।

जैसे गगन में समीर, गंगा का नीर,
सिंध से हिन्द की लकीर बनूंगा।

हिंदी का परचम, हिन्द के बाहर भी हो,
मैं भी कोशिश करूंगा।

अंध का आस्था तक,
भूखे का पास्ता तक।

सब की कथा लिखूंगा।
मैं भी लिखता रहूंगा।

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रचनाकार का परिचय

नटवर चरपोटा

यह कविता हमें भेजी है नटवर चरपोटा जी ने नई आबादी गामड़ी, प. स. तलवाड़, ज़िला बांसवाड़ा, राजस्थान से।

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