हिंदी कविता मन की खुशियाँ | Hindi Kavita Man Ki Khushiyan
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हिंदी कविता मन की खुशियाँ
मन की खुशियाँ गम लिख डाले
ज्यादा नहीं तो कम लिख डाले,
रजनीगंधा सी देह तुम्हारी
पुष्पों सा यौवन लिख डाले।
महका निखरा रूप तुम्हारा
चिर-असीम आभा लिख डाले,
साँसों के महके सर्पो से उन
देहों को चंदन लिख डाले।
मन की खुशियाँ गम लिख डाले
ज्यादा नहीं तो कम लिख डाले।
चंदा का वो रूप निर्वसन
उतर झील में हम लिख डाले,
नीले जल की लेकर आभा
चाँदी – सा तन लिख डाले।
मन की खुशियाँ गम लिख डाले
ज्यादा नहीं तो कम लिख डाले।
साँझ के जलते दीपों के संग
हम तुम राग यमन लिख डाले,
तुम पुरनम तकिया लिखदो तो
हम आँसू शबनम लिख डाले।
मन की खुशियाँ गम लिख डाले
ज्यादा नहीं तो कम लिख डाले।
पता किया तुम सोते कैसे
रातों को रोता लिख डाले,
गया ढूँढनें तारों में जब
वक्त को खोता लिख डाले।
मन की खुशियाँ गम लिख डाले
ज्यादा नहीं तो कम लिख डाले।
पिंजरे के पंछी सा अकेला, मन
सुख-दु:ख अपना लिख डाले,
गिन-गिन दिन हम रह जाते है
छिन-छिन सारे पल लिख डाले।
मन की खुशियाँ गम लिख डाले
ज्यादा नहीं तो कम लिख डाले।
चाहत बड़ी चीज है आखिर
दिल को हम तोहफ़ा लिख डाले,
कर्म से बढ़कर जन्नत माना
रब से बड़ा ओहदा लिख डाले।
मन की खुशियाँ गम लिख डाले
ज्यादा नहीं तो कम लिख डाले।
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