आप पढ़ रहे हैं प्रियंका गौतम जी द्वारा रचित ” हिंदी कविता रीति जगत की ” :-

हिंदी कविता रीति जगत की

हिंदी कविता रीति जगत की

रीति जगत की जाने न कोई 
प्रेम की बाँसुरी पहुँचाने ना कोई 
नन्हें-नन्हें स्वप्न देख सोते जागते यहाँ 
सृष्टि की रीती जाने न कोई 
कभी कोई कहता , कभी जब है कहता 
मधुर चक्र निचोड़ सा, मोह में खोयें 
जब-जब सोचू , निर्मल-कोमल मोह है किसका 
माँ का प्यार अब जाने ना कोई
रीती जगत की जाने न कोई 

रीति जाग की जाने ना कोई 
क्रोध मनुष्य मुख लज्जित सा हुए 
मैं की अभिलाषा कर प्रथम-प्रथम परिचित हैं देता
देख पुण्य प्रहार कर दुख भोगी हुई
रुनझुन- रुनझुन  मन गीत के है पुकारे 
पर मानव आज अपनी परछाई को भी नकारें 
जाग की चिंता मुख़ पर हुए 
अजर अमर बनने की चाह में
खुद को भूल है जाये पर,
लोगों की भीड़ में आंखें बंद कर सो जाएं 
रीति जाग की जाने ना कोई 

रीति जाग की जाने ना कोई 
प्रेम पाने की अभिलाषा कहा कलियुग में हुए 
त्याग कर खुशियों का हहकर है मचाए 
नीले नीले अम्बर पर एक दिन ख़ुद को अकेला हैं पाए 
मुझे चाहा बस है इतनी 
मेरी जय-जय कार  जगत में हुईं 
रीति जाग की जाने ना कोई 

रीति जाग की जाने ना कोई ॥

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रचनाकार का परिचय

यह कविता हमें भेजी है प्रियंका गौतम जी ने दिल्ली से।

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