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कविता आसमां के सफ़र में

कविता आसमां के सफ़र में

आसमां के सफ़र में
होता हैं क्या ?
हल्के फुल्के आते जाते
रुई से फाहों सी बादलों के
नन्हें मुन्ने श्वेत भूरे झुंड
औऱ आसमान के झूठे
नीले आसमानी रंग के सिवा,

आसमान में उड़ने वाला
देखता है कुछ नहीं
पाता है कुछ नहीं
कोई आधार नहीं होता हैं
टिकने के लिए
इसलिए चला आता हैं
ज़मीं पर देर सबेर
ज़मीं से लाख ठनने के बाद भी,

फिर आसमान में
उड़ने का गुमान कैसा ?
आसमान में सफ़र पर
स्वाभिमान किस बात का ?
आसमान पर भरोसा नहीं हैं
किसी मुश्किल में साथ देने का
ताकत नहीं हैं रुई के फाहों सी बादलों के सतह पर
गिरते हुए रुक जाने का,

आसमान नहीं हैं ठिकाना
किसी का भी
प्रारंभ से लेकर अंत तक का,
आसमान के पास कुछ भी नहीं हैं
देने के लिए जीव को
अपनें अंतहीन विशाल क्षेत्र के रहतें हुए भी,

इसलिए आसमां में सफर
होता हैं शून्य में सफ़र
जो हो सकता हैं शायद सत्य
अर्द्ध सत्य या मिथ्या
इंसान के अभिमान गुमान या ख़्वाब सी ।।


रचनाकार का परिचय

बिमल तिवारी यह कविता हमें भेजी है बिमल तिवारी “आत्मबोध” जी ने जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश से। बिमल जी लेखक और कवि है। जिनकी यह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है :- 1. लोकतंत्र की हार 2. मनमर्ज़ियाँ 3. मनमौजियाँ ।

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