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ज्ञान की कविता

ज्ञान की कविता

कब तक चलते रहोगे। लेकर भ्रम की पोटली को हाथ में।
मेरे बाद में कैसे, क्या होगा, मेरे परिवार के साथ में।

यहां कोई किसी का नही, यहां पालते है सब भ्रम को।
तुझे इस लिलिप्सा को छोड़कर, समझना पड़ेगा इस मर्म को।

इस धरा पर आने-जाने का, चलता रहता है क्रम निरंतर।
कभी किसी के ना होने से, नहीं आता इसमें कुछ अंतर।

महाप्रतापी, बड़े- बड़े ज्ञानी, जिनका नहीं था कोई शानी।
नही बच सका कोई भी, चाहे भीष्म रावण व दाधीच दानी।

कब तक चलते रहोगे, इच्छाओं की गठरी को लेकर।
यह मिटने का नाम नहीं लेती, हर बार आती है नया रूप लेकर‌।

इस मोह माया से, तुमको चलना है बचकर।
प्रभु स्मरण करना तुम,हर समय खूब डटकर।

यही है मुक्ति का मार्ग, लेकिन फंसते है भ्रमजाल में।
कब तक चलते रहोगे, फंसते रहोगे इस जंजाल में।

क्या लेकर आया था, क्या लेकर जाएगा।
सब यहीं का था, यहीं धरा रह जाएगा।

इस प्रभु वाणी को, खूब फैलाना मानव जात में।
कब तक चलते रहोगे, लेकर भ्रम की पोटली को हाथ में।

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“रचनाकार का परिचय

हंसराज "हंस"
हंसराज “हंस” जी गत 30 वर्षो से अध्यापन का कार्य करवा रहे है। शिक्षा मे नवाचारों के पक्षधर है। “हैप्पी बर्थडे” “गांव का अखबार” इनके शैक्षिक नवाचार है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं में संदर्भ व्यक्ति ( रिसोर्स पर्सन ) के रूप में 8-10 वर्षों का अनुभव रखते है। तात्कालिक मुद्दों, जयंतियों व सामाजिक कुरीतियों पर आलेख लिखते रहते। मौलिक लेख विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व देश व प्रदेश की पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। इसके साथ ही न्यूज पोर्टल व सोशल मीडिया के माध्यम से भी कई वेबीनारो व फेसबुक लाइव प्रसारण पर विभिन्न मंचों के माध्यम से अपने मौलिक विचारों का प्रकटीकरण करते रहते है। शिक्षक संगठन व सामाजिक संगठनों में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हुए निरंतर सामाजिक सुधारों की ओर अग्रसर है।

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