आप पढ़ रहे रहे हैं ( Gyan Ki Kavita ) ज्ञान की कविता :-
ज्ञान की कविता
कब तक चलते रहोगे। लेकर भ्रम की पोटली को हाथ में।
मेरे बाद में कैसे, क्या होगा, मेरे परिवार के साथ में।
यहां कोई किसी का नही, यहां पालते है सब भ्रम को।
तुझे इस लिलिप्सा को छोड़कर, समझना पड़ेगा इस मर्म को।
इस धरा पर आने-जाने का, चलता रहता है क्रम निरंतर।
कभी किसी के ना होने से, नहीं आता इसमें कुछ अंतर।
महाप्रतापी, बड़े- बड़े ज्ञानी, जिनका नहीं था कोई शानी।
नही बच सका कोई भी, चाहे भीष्म रावण व दाधीच दानी।
कब तक चलते रहोगे, इच्छाओं की गठरी को लेकर।
यह मिटने का नाम नहीं लेती, हर बार आती है नया रूप लेकर।
इस मोह माया से, तुमको चलना है बचकर।
प्रभु स्मरण करना तुम,हर समय खूब डटकर।
यही है मुक्ति का मार्ग, लेकिन फंसते है भ्रमजाल में।
कब तक चलते रहोगे, फंसते रहोगे इस जंजाल में।
क्या लेकर आया था, क्या लेकर जाएगा।
सब यहीं का था, यहीं धरा रह जाएगा।
इस प्रभु वाणी को, खूब फैलाना मानव जात में।
कब तक चलते रहोगे, लेकर भ्रम की पोटली को हाथ में।
पढ़िए :- कर्मयोगी पर कविता | उन कर्मवीरों की क्या बात करें
“रचनाकार का परिचय

“ ज्ञान की कविता ” ( Gyan Ki Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।
हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।
धन्यवाद।
Leave a Reply