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कविता काली का हो अवतार

काली का हो अवतार

बढ़ते कलयुग की छाया में
पाया असुरों ने फिर आकार,
फिर काली का हो अवतार,
फिर काली का हो अवतार।

सत्यभूमि अब बनी मरुस्थल
झूठ की बढ़ रही पैदावार,
फिर काली का हो अवतार,
फिर काली का हो अवतार।

शोषित जन का आक्रोशित मन
अब करे निरंतर यही पुकार,
फिर काली का हो अवतार,
फिर काली का हो अवतार।

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रचनाकार का परिचय

यह कविता हमें भेजी है त्रिवेणी शुक्ला जी ने।

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