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हिंदी कविता खूब हूँ रोया

हिंदी कविता खूब हूँ रोया

उसकी काली जुल्फो के साये में
रहने का मन करता है
दिल कितना भी रूठ जाए ,,
पर उसे सुनने का संग करता है

हाथों की बनी चाय फिर से
पीने का मन करता है
मुड़कर देखा वो वहीं खड़ी है ,,,
उसको गले लगा कर
रोने का मन करता है

आंखे कितनी भी नम हो उसकी,,,,,
उसे खुश देखने का मन करता है
बैठक होती थी कभी उस सूरज के साथ
अब तो वो सनसेट भी बेरंग लगता है

बस अब तो याद है उसकी सिर्फ बाते ,,,
कहती मत करो इतनी तारीफे जनाब
क्योंक ढलती चांदनी में ये चांद भी ढलता है
ठहर तो जाता उस वक्त को लेके ,,,

जिस पल मै सोया था..
दिल में आंच नहीं ज्वाला थी.
उस पल खूब हूं रोया……
धड़कन को एक बार तो सुनती
जिस पल तुमको है खोया था……

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रचनाकार का परिचय

अनुपम गुप्तायह कविता हमें भेजी है अनुपम गुप्ता जी ने कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश से।

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