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परिवार पर हिंदी कविता

परिवार पर हिंदी कविता

अरुणोदय की आभा का विस्तार बचा लो हे भगवन।
भारत मां के आंगन के परिवार बचा लो हे भगवन।।

परिवार वही जो अपनेपन के भावों से हो भरा हुआ,
रिश्तों का संसार जहां हो प्रेम सिंधु से घिरा हुआ,
प्रेम सिंधु की गहराई में रत्न समूह अलंकृत हों,
और उदधि मन्थन से जीवन के उद्वेग नियंत्रित हों,

गुण दोष भिन्न हो जायं भले पर एकरूपता बनी रहे ,
मूलभूत मतभेद मिटाकर नित्य बंधुता बनी रहे,
संग्राम भयंकर करने को चाहे आतुर उद्यमता हो ,
किन्तु स्वयं में कष्ट सहन करने की उत्तम क्षमता हो,

गं गणेश गणपति गजानन लंबोदर अधिनायक हों,
आदिगुरु शिव महादेव गौरी के पुत्र विनायक हों,
परिवारों के विघटन से हम सीख सकें तो अच्छा है,
शिवकुटम्ब के किरदारों में एक अनोखी शिक्षा है,

घर घर में अपनेपन का व्यवहार बचा लो हे भगवन ।
भारत मां के आंगन के परिवार बचा लो हे भगवन ।।

धन्य धाम कैलाश हिमाचल पर कुटुम्ब कुल प्यारा हो,
नीलकंठ ने कंठ में अपने जहां हलाहल धारा हो,
परिभाषा पुलकित होती आदर्श स्थिति को पाकर,
शिव जी का परिवार देख ले कोई हिमगिरि पर जाकर,

लिए सवारी मूषक की श्री लम्बोदर मुस्कान भरें,
विषधर शिव के गरदन से ही मूषक का सम्मान करें,
नन्दी बैल बैठकर शिव के द्वार सुशोभित होते हैं ,
जहां भी जाना होता शिव का भार वही सब ढोते हैं,

परन्तु देखो उसी सदन में उमा भवानी भी तो हैं,
सिंहराज के साथ में जिनकी अमिट कहानी भी तो है
शेर कभी भी नन्दी को आहार बना सकता वन में,
किन्तु प्रेम से मिलजुल कर सब रहते है शिव आंगन में,

सभी पात्र परिवार भूल यदि निज स्वभाव में आ जाएं,
तो सच है की एक दूजे को नोच नोच कर खा जाएं,
नाश करो मन की नफरत को प्यार बचा लो हे भगवन।
भारत मां के आंगन के परिवार बचा लो हे भगवन।।

कार्तिकेय का मोर चाह ले तो विषधर को खा जाए,
भूले रिश्ते का महत्व तो कच्चा काट चबा जाए,
किन्तु एक परिवार के नाते जुड़ जुड़ कर सब रहते हैं,
शिव जी के इस सुंदर घर में रिश्ते खूब संवरते हैं,

बस इसी तरह से परिवारों में द्वेष भाव मत होने दो,
और जड़ों से जुड़े रहो कुछ मन मुटाव मत होने दो, 
यही मंत्र इस वसुधा का कल्याण कुशल कर सकता है,
यही रसायन मानवता की हर पीड़ा हर सकता है,

जब स्वारथ के रथ पर चढ़कर रथी स्वयं इतराता है,
तब अपनों से हारों को, अपना इतिहास चिढ़ाता है,
कुछ लोग यहां भी मलीनता में इत्र ढूंढते रहते है,
वन वृक्षों को कांट छांट वन चित्र ढूंढते रहते हैं ,

षड्यंत्रों के सुबह शाम चलचित्र ढूंढते रहते है ,
शत्रु समझते हैं भाई को और मित्र ढूंढते रहते है,
सुमनो के सुरभित सुरभित श्रृंगार बचा लो हे भगवन।
भारत मां के आंगन के परिवार बचा लो हे भगवन ।।

मिटा के मन से द्वेष मृदुल व्यवहार बचाना होगा जी,
अपनों के संग अपनों का परिवार बचाना होगा जी,
आपस मे झंझट झगडा या मार किया न करते हैं ,
अपनो के ही बीच खड़ी दीवार किया न करते हैं,

साथ रहे परिवार तो सारी मुश्किल हल हो जाती है,
साथ रहे परिवार तो मनचाही मंजिल मिल जाती है,
जुड़ी भुजाएं जहां जहां पर भाई भाई के खातिर,
सफल हुए संग्राम वहां पर जगत भलाई के खातिर,

राम लखन का गौरव था आल्हा ऊदल तलवारी थे,
समरू लोरिक के समर भयंकर वीर बड़े बलकारी थे,
साथ रहे परिवार तो सारा जीवन उन्नत लगता है,
कलह कपटता मिट जाए तो जीवन जन्नत लगता है,

परिवार वही जो बेटी को अवसर समान दे देते हैं,
पढा लिखा कर बेटी को ऊंची उड़ान दे देते हैं
साथ रहे परिवार तो बेटे कृष्ण राम हो सकते है,
कोई विवेकानंद तो कोई अब्दुल कलाम हो सकते हैं,

इसीलिए परिवारों के आधार बचा लो हे भगवन।
भारत मां के आंगन के परिवार बचा लो हे भगवन।।
परिवारों में दादी औ दादा का मान बराबर हो,
ध्यान रहे कुल परम्परा का किंचित नहीं अनादर हो,

चाची चाचा और भतीजों  में सम्बंध सुनहरा हो,
अपनेपन के एहसासों का भाव हमेशा गहरा हो,
टूटे ना परिवार कभी यह ध्यान धारणा कर लेना,
एक दूजे का हाथ न छूटे त्याग भावना भर लेना,

टूटे ना परिवार नहीं तो कुल वैभव मिट जायेगा,
टूटेगा परिवार अगर तो भारत भी टूट जायेगा
टूटा परिवार दशानन का तो मौत वारता लंका में,
कोई ना बच सका वहां जो दीया बारता लंका में,

टूटे जब कौरव पाण्डव तो लड़ना मरना स्वीकार किये,
अपने ही हाथों से अपने अपनों का संहार किये,
घिर गई प्रलय घन घेर लिए अवनी अम्बर थर्राए थे,
परिवार टूटने से अपने अपनों पर बाण चलाए थे,

वर्तमान पीढ़ी का सुन्दर सार बचा लो हे भगवन ।
भारत मां के आंगन के परिवार बचा लो हे भगवन।।
टूटा था परिवार अवध का सब चेहरे मुरझाए थे,
ग्रहण लगा था अन्तरिक्ष में सूर्य चंद्र घबराए थे,

कैकेई के कुटिल वचन से दशरथ जी लाचार हुए ,
पूरी प्रजा सहित स्वयं ही नजरों मे धिक्कार हुए,
कैकेई को कहा कभी था, मैंने ही वर देने को,
पर क्या वो यही वचन है मनमाना कर लेने को,

राजतिलक की ख्वाहिश भूले इच्छाओं को मारा,
भिक्षुक बन कर रामचंद्र ने वन की ओर सिधारा,
आनन फेर लिए ये कहकर बहे नयन से धारा,
कुछ भी किसी पिता को होता नही पुत्र से प्यारा ,

बोले राम पिताश्री से, जो निकला माता के मुख से ,
उनके वचनों का मै पालन करूँगा पूरे सुख से,
जनक नन्दिनी संग लखन के राम राज्य को त्याग चले,
चौथेपन मे शोकित दशरथ पुत्र शोक की आग जले,

एक तरफ धरती के हित में भगवामय दुःशाला थी,
एक तरफ रघुकुल रीति पर चिता अग्नि की ज्वाला थी,
रामचंद्र जी कुल गौरव की परम्परा की चाह किए,
और स्वयं चौदह वर्षों के खातिर वन की राह लिए,

प्रेम था इतना बड़ा की माता सीता जी भी अड़ी रहीं,
और उर्मिला चौदह वर्षो तक लोटा ले खड़ी रही ,
इसीलिए परिवार के खातिर त्याग की जय जयकार करो,
और प्रेम अनुराग के खातिर रामायण स्वीकार करो,

इसीलिए मां पिता के संग दादी दादा का मान करो,
संभव जो हो सके जहां तक सबका ही सम्मान करो,
संस्कार सभ्यता से जगमग जगमग निज परिवेश रहे,
अपने अपने कर्तव्यों मे नेकी का सन्देश रहे ,

अगर पालते रहे उम्र भर आदर के परिवेश को,
तो आप बचा सकते हो निश्चित अपने भारत देश को,
सन्देहो की आधी से गुलज़ार बचा लो हे भगवन।
भारत मां के आंगन के परिवार बचा लो हे भगवन।।

पढ़िए :- परिवार पर कविता | यही अनमोल परिवार है


रचनाकार  का परिचय

जितेंद्र कुमार यादव

नाम – जितेंद्र कुमार यादव
धाम – अतरौरा केराकत जौनपुर उत्तरप्रदेश
स्थाई धाम – जोगेश्वरी पश्चिम मुंबई
शिक्षा – स्नातक

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