अपने जीवन को दूसरों की सेवा के प्रति समर्पित करना ही एक इन्सान का धर्म होना चाहिए। प्रस्तुत है इसी के लिए उत्साहित करती उत्साहवर्धक कविता ” पथिकों का पथ करूँ प्रकाशित ” :-
उत्साहवर्धक कविता
मैं दीवाली के दीपक के दीपशिखा का द्योतक हूँ !
पथिकों का पथ करूँ प्रकाशित अंधेरों का शोषक हूँ !!
मैं दीवाली के दीपक के दीपशिखा का द्योतक हूँ !
मेरी चाह है दुनिया के हर कोनें में उजियारा हो,
मेरी चाह है दुनिया में न कोई भूख का मारा हो,
मेरी चाह है मेरी ज्योत जले राह दिखलाने में,
मेरी चाह है मैं जल जाऊं परहित नित्य निभाने में,
मेरी चाह है मेरे घट के घी का स्तर कम ना हो,
मेरी चाह है मेरे लौ की रंगत कभी ख़तम ना हो,
मेरी चाह है मेरी बाती सदा प्रज्वलित हो हर पल,
मेरी चाह का करो संरक्षण मैं जीवन कर दूँ उज्जवल,
मैं जीवन में मंगल लाने का बस एक आवेदक हूँ !
मैं दीवाली के दीपक के दीपशिखा का द्योतक हूँ !!
मैं दीये की कठिन तपस्या की पीड़ा बतलाऊंगा,
स्वयं को जो स्वाहा कर जाता गान उसी के गाऊंगा,
मैं जल जाता हूँ जल जलकर घर को रोशन करनें में,
अति दुखदायी कष्ट सहन करता अँधियारा हरने में,
मोल कौन समझेगा मेरी अथक परिश्रम पीड़ा का,
जलते जलते झंझावातों को झलने की क्रीड़ा का,
आह्वान करता हूँ आओ दीपक जैसे जलने को,
कौन भला तइयार यंहा है कठिन मार्ग पर चलने को,
मैं अंधियारों में उजियारा लाने का एक याचक हूँ !
मैं दीवाली के दीपक के दीपशिखा का द्योतक हूँ !!
झोपड़ियों के भूखे बच्चों को यह भूख जलाती है,
नौनिहाल बचपन के जीवन पर तलवार चलाती है,
जहाँ कुपोषण की गलियों में मौत का आना जाना है,
फूल बिखरकर गिर जाए कब कोई नहीं ठिकाना है,
मातम के माहौल में मां की ममता कभी भी रो देगी,
दवा और उपचार बिना वह लाल को अपने खो देगी,
अन्न नहीं है खानें को ना जीवन में कुछ राहत है,
आज उन्हीं के घर चलने को मेरे मन की चाहत है,
मैं भूखे बच्चों की अनहद पीड़ा का उद्घोषक हूँ !
मैं दीवाली के दीपक के दीपशिखा का द्योतक हूँ !!
दीया तेल औ बाती लेकर घर घर अलख जलाएंगे,
जो सक्षम हो साथ में आएं हम उनको बतलायेंगे,
गर थोड़ा सा त्याग करें हम खुँशियों को ले आनें में,
तो अपना क्या बिगड़ेगा बस थोड़ा कष्ट उठानें में,
अंधेरों में ज्योत जलानें इक दीपक ले जाएंगे,
भूखों और गरीबों के संग कुछ तो मीठा खाएंगे,
उनकी गमी गरीबी में हम थोड़ा सा अनुदान करें,
खुँशियाँ उनके घर में भी हो हम इतना सा ध्यान धरें,
भूख और भोजन के पल का मैं बस एक संयोजक हूँ!
मैं दीवाली के दीपक के दीपशिखा का द्योतक हूँ !!
भोग विलास के इस जीवन में हम इतना क्यूँ फूल गए,
अपने मन के सुख संचय में कर्म भाव क्यूँ भूल गए,
मानवता के हित में कब हम सच्चा धर्म निभाएंगे,
दीपक जैसे जल जलकर जग रौशन कब कर पाएंगे,
सब में सेवा भाव जगे हम भी नैतिकता थाम चले,
भूखे पेट में भोजन भरने का हमको भी काम मिले,
जिस दिन थोड़ा कष्ट सहन कर हम भी फ़र्ज़ निभाएंगे,
उस दिन जलते दीपक जैसे हम पावन हो जायेंगे,
रश्मिरथी के तेजपुंज का मैं संवाहक घोटक हूँ !
मैं दीवाली के दीपक के दीपशिखा का द्योतक हूँ !!
पढ़िए :- उत्साह बढ़ाने वाली कविता “समय बहुत ही सीमित है”
नाम – जितेंद्र कुमार यादव
धाम – अतरौरा केराकत जौनपुर उत्तरप्रदेश
स्थाई धाम – जोगेश्वरी पश्चिम मुंबई
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