रेजांगला युद्ध 1962 कविता | Rezang La War Poem In Hindi

आप पढ़ रहे हैं रेजांगला युद्ध 1962 कविता :-

रेजांगला युद्ध 1962 कविता

रेजांगला युद्ध 1962 कविता

मैं सूरज के तेजपुंज से तिमिर मिटाने आया हूं ।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं ।।

धूल धूसरित स्वर्णिम पन्नों की मैं धूल हटाऊंगा,
और वीरता के स्वर मे भारत का गौरव गाऊंगा,
वसुन्धरा के पुण्य अंक में जिन वीरों ने प्राण दिए,
देश हितैषी मनोभाव ले भारत का निर्माण किए,

जब जब रिपुदल भारत भू पर अपनी आंख गड़ाए है,
तब तब वीरों ने वसुधा पर अपना शीश चढ़ाए है,
बचन लिए तो भूलें कैसे व्यवधानों से डरे ही क्यों,
मौत सत्य है जीवन में तो कायर जैसे मरे ही क्यों,

हिमगिरी के उत्तुंग शीर्ष पर चुनौतियों का मंजर हो,
उद्वेलित लहरों के जिद पर बौना भले समंदर हो,
जहां प्राण को पोषण मिलने की ना कोई आशा हो,
जहां विषमता के आंगन में अंधाधुंध कुहासा हो,

वहां देशभक्ति का उज्जवल पक्ष दिखाने आया हूं ।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं।।

बलिदानों की पुनरावृत्ति करती है जयघोष सदा,
इसीलिए रणवीरों में देखा जाता आक्रोश सदा,
कुरबानी की परिपाटी से देश बचा पाया हमने,
विश्व सभ्यता में सुंदर परिवेश बचा पाया हमने,

भारत के उत्तर में हिमगिरि का विशाल विस्तार जहां,
भूमंडल पर कुदरत में कौतूहल का अम्बार जहां,
सासों का रेचक पूरक भी कठिन क्रिया बन जाता है,
हिम प्रवाह से वसुन्धरा पर श्वेत वसन बिछ जाता है,

बर्फीले तूफानों में लड़ने का जिसमे माद्दा हो,
विकट क्षणों में भी आगे बढ़ने का जज्बा ज्यादा हो,
वहां विजय या वीरगति में विचलित नहीं हुआ करते, 
संकल्पित हो फिर विकल्प की रेखा नहीं छुआ करते,

वहीं शीर्ष के शैल शिखर को याद कराने आया हूं ।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं ।।

उन्नीस सौ बासठ के रण में चीन चलाकी कर बैठा था,
भारत की लंबी सीमा पर जब गुस्ताखी कर बैठा था,
साम्यवाद का रूपक बन विस्तारवाद को साधा था,
संप्रभुता को छिन्न भिन्न करने का कुटिल इरादा था,

उत्तर भारत के दक्षिण लद्दाख में पैनी नजर रही,
उसकी तैयारी में रत्ती भर ना कोर कसर रही,
रेजांगला की रक्षा का व्रत भारत का कर्तव्य रहा,
हर सैनिक का अदम्य साहस सभ्य भभ्य व दिव्य रहा, 

गुप्तचरों से मिली सूचना चीन चाल कुछ खेलेगा,
तीन हजार के सैनिक बल से हम पर धावा बोलेगा,
इधर कुमाऊं बटालियन थर्टीन का गहरा पहरा था,
और चार्ली कंपनी में वीर अहिरों का दल ठहरा था,

उन वीरों के धैर्य शौर्य का सत्य सुनाने आया हूं ।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं ।।

कर विचार सेना अधिकारी अपनी राय सुनाए है,
वह मेजर शैतान सिंह से तथ्य सत्य बतलाए हैं,
मात्र एक सौ बीस जवानो की अपनी सैनिक टुकड़ी,
तीन हजार के सम्मुख सोचो कैसे होगी जीत बड़ी,

अपनी छोटी टुकड़ी है चाहो तो पीछे हट जाना,
थोड़े दिन फिर तैयारी कर समर भूमि में डट जाना,
बोले मेजर मैं चौकी को छोड़ कही न जाऊंगा,
मातृभूमि के लिए भले ही वीरगति पा जाउंगा,

वीरगति श्रृंगार बनेगी तो श्रृंगार सजाउंगा,
पर युद्धों से वापस जाकर किसको शकल दिखाउंगा,
मां भाई सुत बन्धु पिताश्री को समझाना भी तो है
देश के हित जो शपथ लिया है उसे निभाना भी तो है

उसी शपथ के वशीभूत कर्तव्य निभाने आया हूं ।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं।।

बोले मेजर सुनो जवानों निर्णय अपना ले लेना,
जिसे युद्ध भूमि हो प्यारी हाथ उठाकर कह देना,
जो पीछे हटना चाहें वो पीछे भी हट सकते हैं,
जो डट के लड़ना चाहे वो मोहरे पर डट सकते है,

बोले वीर जवानों ने, सर!! संग्राम बड़ा जब होता है,
तो रण से पीछे हटने का फिर प्रश्न खड़ा कब होता है, 
जोश और जज्बे की अन्दर भरी पड़ी चिनगारी है,
हम तो उनके वंशज हैं जो चक्र सुदर्शन धारी हैं,

गीता का जब ज्ञान कृष्ण ने अर्जुन को बतलाया था, 
तब देश धर्म और राष्ट्र सुरक्षा का आदर्श सुनाया था,
आज वही क्षण सन्मुख होकर सीमा पर ललकार रहा,
अपने आदर्शों के खातिर पौरुष को पुकार रहा,

आज उसी पौरुष का मैं भी सार बताने आया हूं।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं।।

सारे वीर अहीर सैनिक दल मल्ल युद्ध के ज्ञाता थे,
उनके नित्य अखाड़ों में बजरंगी भाग्य विधाता थे
तीन हजार की संख्या से वे थोड़े तो सकुचाए थे,
परन्तु अपनी क्षमता पर वो अपना जोश बढ़ाए थे,

शस्त्रों की भी कमियां थी गोली बन्दूक पुराने थे,
शीत-अवरोधी वस्त्र नही थे, फिर भी सभी दीवाने थे,
आज मौत के आमंत्रण पर आएंगे यमराज अभी,
यमदूतों को पूरा पूरा मदद करेंगे आज सभी,

होगी भले हिसाब में देरी प्रथम मौत का स्वागत होगा,
रणभेरी बजते ही दुश्मन दल का लक्ष्य विरथ होगा,
अंशुमान के अनल दाह से रक्त उबलकर डोलेगा,
तब साहस में सैनिक भारत माया की जय बोलेगा,

उस विराट वैभव स्वरूप का चित्र सजाने आया हूं ।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं।।

मध्यरात्रि बीत चली थी निविड निशा धुंधलाई थी,
अभी प्रभाकर के दर्शन को रजनी भी अकुलाई थी,
भोर की बेला थी ऐसी की पौने चार बजे होंगे,
चीनी सेना चली झुण्ड में जैसे शस्त्र सजे होंगे,

हिन्द सिपाही चौकन्ना बंकर से नजर गड़ाए थे,
और इधर मेजर फायर की आज्ञा नहीं सुनाए थे,
चार सौ मीटर की दूरी है अभी भी अंदर आने,
तीन सौ मीटर की दूरी भी उन्हें पार कर जाने दो,

दो सौ से घटकर पचास अब तीस तलक आ जाने दो,
अब फायर का आडर है अब उन्हें मौत दिख जाने दो, 
अंधाधुंध चली गोली जो गिरा शत्रु वो फिर न जगा,
बीस मिनट में ढाई सौ से अधिक शवों का ढेर लगा,

वीर अहीरों की ध्वजा सजा नभ में फहराने आया हूं ।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं ।।

चीनी सैनिक मृत्य सेज पर सोने को आमादा थे,
और दूसरे हमले में तो पहले से भी ज्यादा थे,
साढ़े छह का वक्त हुआ था प्रथम प्रभा की लाली थी,
आज सुबह ही चामुण्डा नरमुंड सजाने वाली थी,

चली खेप बम बंदूकों की नर तन गिरने लगे सभी,
साढ़े चार सौ लाशों में यमदुत विचरने लगे तभी,
हाहाकार मचा ऐसा की घंटे भर विश्राम मिला,
फिर से दुगुना तिगुना चीनी सेना से संग्राम चला,

इधर भी मौतें उधर भी मौतें मौतों का विस्तार बढ़ा,
सात बार तक घमासान का इतना अधिक प्रहार बढ़ा, 
अब तक अपने आधे सैनिक मातृभूमि से लिपट गए,
सर्द हवाओं में सीने पर गोली खाकर सिमट गए,

रणभूमि के वीरों का यशगान सुनाने आया हूं।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं।।

अप्रतिम इस गाथा का सोपान अभी भी बाकी है,
रेजांगला के वीरों की पहचान अभी भी बाकी है,
अब पीछे से चीनी सैनिक अन्तिम धावा बोल दिए,
भारत के नौज्वानों ने भी अपनी बाहें खोल दिए,

खतम हुआ था अस्त्र शस्त्र ना बंदूकों में गोली थी,
हथगोले भी खतम हो गए अब जय जय की बोली थी,
जय जय दादा किशन बोलकर मल्ल युद्ध के मतवाले,
संगीनों से लगे भेदने दुश्मन जो पड़ते पाले,

सिंहराम का क्या कहना बजरंग बली भुजदंडों में,
मार डालते आपस में टकरा कर दो दो मुण्डों में,
सीने पर टकराती गोली पत्थर पर टकराती थी,
आज युद्ध में वीरो को लड़ने की भूख मिटाती थी,

विजय पराजय से रोचक कौशल दिखलाने आया हूं ।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं।।

उठा उठा कर पटक पटक कर चीनी तोड़े जाते थे,
बंदूकों की बट से उनको सिर को फोड़े जाते थे,
हथियारों का अंत हुआ तो पत्थर के हथियार चले,
तीन हजार में तेरह सौ को एक सौ चौदह मार चले,

अब मेजर शैतान सिंह भी गोली के शिकार हुए,
छह जवान अब चीन के द्वारा बन्दी बन लाचार हुए,
इधर निहाल सिंह चकमा देकर चीन से भारत आए हैं,
रामचंद्र जी युद्ध सूचना अफसर को पहुंचाए हैं,

रेजांगला के आघात को अब चीनी दल भी समझ गए,
युद्ध विराम की किए घोषणा और स्वयं में उलझ गए,
तीन महीने बाद वहां से सच्चाई जब आई है,
तब भारत की सेना अंतिम संस्कार करवाई है,

दिव्य अनूठी गाथा को घर घर पंहुचाने आया हूं ।
इतिहासों के छुपे हुए पन्ने दिखलाने आया हूं ।।

पढ़िए :- भीष्म पितामह की कविता | कहो धर्म से युद्ध लड़ूं


रचनाकार  का परिचय

जितेंद्र कुमार यादव

नाम – जितेंद्र कुमार यादव
धाम – अतरौरा केराकत जौनपुर उत्तरप्रदेश
स्थाई धाम – जोगेश्वरी पश्चिम मुंबई
शिक्षा – स्नातक

“ रेजांगला युद्ध 1962 कविता ” ( Rezang La War Poem In Hindi ) आपको कैसी लगी? “ रेजांगला युद्ध 1962 कविता ” ( Rezang La War Poem In Hindi ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।

हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।

धन्यवाद।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *