कविता माँ की यादें

कविता माँ की यादें

कविता माँ की यादें

मेरी उम्र बीतती जाती है
पल-पल तुझे बुलाने में!
जाने कितनी यादें भरी है
तेरे इस आँचल में!!

क्या सच में दूर गयी है हमसे
ऐसा हमको लगा नहीं,
भावों को समझा निज मन के
दु:ख में कभी मैं भगा नहीं,
इक सुकून सा मिलता है
खुद को यूँ ही समझाने में,
जाने कितनी यादें भरी है
तेरे इस आँचल में!!

तु हरदम रहती सामने मेरे
ऐसे भ्रम में मैं जीता हूँ,
ना दिखती जब सूरत तेरी
खुद के अश्कों को मैं पीता हूँ,
इक खुशबू सी छा जाती है
बस इतना तुझे जताने में,
जाने कितनी यादें भरी है
तेरे इस आँचल में!!

सारे परिजन मग्न हो गये
बस झलक तुम्हारी पाने को,
नाती-पोतों से भरा घर तेरा
अपनी बातें बताने को,
बीत ना जाए कहीं ये घड़ियाँ
यूँ ही तुझे मनाने में,
जाने कितनी यादें भरी है
तेरे इस आँचल में!!

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