पटल को समर्पित कविता

पटल को समर्पित कविता

पलता आया प्राण पिंजर में
हर साँस ने मेरी गाया,
एक से बढ़कर एक सुर-पाँखी
पटल के मन को भाया।

ढ़ली साँझ बन मुरली जैसी
मधुर तान का फेरा,
कलरव करते ओर चहकते
चहूँ और परिंदी डेरा,
अक्षर-मंत्र शब्द के टोने
स्वर के बाण चलाया,
रचनाओं के स्नेह पंखों से
पटल का मान बढ़ाया।

एक से बढ़कर एक सुर-पाँखी
पटल के मन को भाया।

पटल के रोम-रोम में महके
रचनाओं ग़जलों की प्रीत,
पटल की हर थिरकन में गूँजे
कवियों का सूरमय संगीत,
पटल की बोली में गूंगा
आकाश मुखर हो जाए,
पटल की शब्द-तूलिका ने
ये कैसा चल-चित्र बनाया।

एक से बढ़कर एक सुर-पाँखी
पटल के मन को भाया।

औरौं का था अलहदा
अपना था एक नजरिया,
पिघलेगा होकर के तन्हा
तम में जो भरमाया,
चाँद सितारों को छूने की
कभी ना होड़ लगायी,
पटल को रच के यदु जय जी
ने अपना फर्ज निभाया।

एक से बढ़कर एक सुर-पाँखी
पटल के मन को भाया।

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