कविता माँ तो है परछाई | Kavita Maa To Hai Parchhai

कविता माँ तो है परछाई

कविता माँ तो है परछाई

कविता माँ तो है परछाई

माँ तो है परछाई हमारी
इसकी दया का मोल नहीं!
मागें बिना हो मुरादें पूरी
इसकी कृपा का तोल नहीं!!

तन मन निज अर्पण करके
चरणों में शीश झुकाना सब,
कहो शरण में तेरी आयें है
संकट हरोगी मेरे कब,
जुबां में रस भक्ति का भरदे
तेरे सिवा कोई बोल नहीं!!

माँ तो है परछाई हमारी
इसकी दया का मोल नहीं!

आघोष में तेरी लौट आया
जो बेटा कहके बुलाया था,
पेट को अपने काट के पाला
गोद में अपनी सुलाया था,
स्नेहपूर्ण स्पर्श तुम्हारा
लव्जों का कोई शोर नहीं!!

माँ तो है परछाई हमारी
इसकी दया का मोल नहीं!

हम तो नहीं भागीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें,
तुम तो ख़ुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें,
तुझ पर फूल चढ़ाएँ कैसे
तुझसा कोई अनमोल नहीं!

माँ तो है परछाई हमारी
इसकी दया का मोल नहीं!

अंधियारी रातों में मुझको
थपकी देके सुलाती थी,
कभी प्यार से मुझे चूमती
कभी डाँटके पास बुलाती थी,
नम आँखें आँचल में मुखड़ा
हुई कभी भी भोर नहीं!

माँ तो है परछाई हमारी
इसकी दया का मोल नहीं!

पढ़िए :- कविता माँ की यादें – तेरे इस आँचल में


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धन्यवाद।

Praveen Kucheria

Praveen Kucheria

मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।

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