हिंदी कविता उत्कर्ष का दर्जा | Kavita Utkarsh Ka Darja
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हिंदी कविता उत्कर्ष का दर्जा
गलतियां हुई थी
ये मान रहा,लेकिन
ये बात कोई समझाओ उसे…
दूर जानें की कोई एक
वजह बतलाओ तो मुझे
मै पूछता हूं लेकिन,
तुम कुछ बताती नहीं
करूँ कितनी भी कोशिश
दिल बहलाने की मगर,
तुम्हारी याद
दिल से जाती नहीं,
तुम्हारी बातो में हसी मन भावन सी थी
अंकित तो है तुमरी जिन्दगी में लेकिन
बाते उत्कर्ष की रंग सावन सी थी…
भोर हुई तुम्हारे काले बालों की छाँव में
होठों की हंसी गंगा जैसी पावन सी थी
शैतानी मैं कितनी भी कर लूँ लेकिन
उत्कर्ष की शैतानी घोड़े धावन सी थी….
लम्हों में उत्कर्ष की यादें …
उसके आगे मैं कुछ भी नहीं…
कोशिश करी कुछ उत्कर्ष करूँ लेकिन
उत्कर्ष की कोशिश मेरे ज्योंरावन सी थी…
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है अनुपम गुप्ता जी ने कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश से।
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