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खोटे सिक्के पर कविता

खोटे सिक्के पर कविता.

मै सिक्का हूं खोटा,
एक दिन मै भी चलूंगा।

भीख में कभी मस्जिद में,
पुजारी की थाली में मिलूंगा।

ख़ुश हूं किसान के हाथो में,
अमीर के लॉकर में न सडूंगा।

हक चुरा न ले कही नोट ये,
मै मेरे हक की खातिर लड़ूंगा।

मै सिक्का हूं खोटा,
कभी तो मै भी चलूंगा।

बार बार ठुकरा देते लोग,
अब चप्पलों नीचे नहीं रहूंगा।

अन्तिम विदाई में कही,
ईश्वर के चरणों में रहूंगा।

नादान बच्चे ही संभालते मुझे,
बड़ों के लिए थो खोटा ही रहूंगा।

पड़ा था गुल्लक में अच्छा खासा,
वो भी तुड़वा दिया महगाई ने,
मै अब महगांई से लड़ूंगा।

पढ़िए :- गुल्लक पर कविता “बचत करना है जरूरी”


रचनाकार का परिचय

नटवर चरपोटा

यह कविता हमें भेजी है नटवर चरपोटा जी ने नई आबादी गामड़ी, प. स. तलवाड़, ज़िला बांसवाड़ा, राजस्थान से।

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