धरती के सीने पर हल चला कर लोगों का पेट भरने वाले किसान पर छोटी कविता “अपने बल से बंजर धरती को ”
किसान पर छोटी कविता
गांवो की गलियों में चलकर
कांटो की चुभन सहकर किसान।
अपने बल से बंजर धरती को
हरा भरा करता वह रेगिस्तान।।
मिटटी से वह करता है बाते
सलिल से बुझाता उसकी प्यास।
तीव्र आंधी के आ जाने से
एक पल को नहीं होता उदास।।
धरती के उपजाऊ आंचल में
बीज डालकर वह चलाता हल।
विश्वास रखता सदैव ईश्वर पर
कि मेहनत का फल मिलेगा कल।
देख भाल खेत खलिहानों की
करता जागकर अंधेरी रातों में।
भयभीत होकर नहीं भागता
भयंकर तीव्र सी बरसातों में।।
जब खेतों में आती हैं हरियाली
ह्रदय में मिलता उसे सुकून।
यह देखकर मन में भरता
दोगुना मेहनत करने का जुनून।।
विकट धूप वह हंसकर सहता
तम का सदैव पीकर प्याला।
उसे ज्ञात है आज नहीं तो कल
निकलेगा सुखमय सा उजाला।।
इनके मेले वस्त्रों को देखकर
जीवन में नहीं कभी करना शर्म।
हम सब के लिए प्रेरणा है वह
इन्हें देखकर तुम सब करना गर्व।
पढ़िए :- किसान पर कविता ” हल चलाने को मजबूर हुआ “
नमस्कार प्रिय मित्रों,
मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।
क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।
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